जिस्म की जरूरत-14
Jism Ki Jarurat-14
जिस्म की जरूरत-13
थोड़ी देर हम सब यूँ ही एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते रहे और इस पूरे समय के दरम्यान वंदना मुझसे चिपक कर रही और अपने हाथों से मेरा हाथ पकड़े रखा, उसके हाथों में मेरा हाथ यूँ देख कर लड़कियाँ तिरछी निगाहों से देख देख कर मुस्कुराती रहीं तो वहीं लड़कों की आँखों में मुझे जलन साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी।
आखिर मैं भी एक लड़का हूँ और मुझे पता है उस एहसास के बारे में जब आपके क्लास की सबसे खूबसूरत लड़की किसी और का हाथ थामे बैठी हो और आप बस अपना मन मसोस कर रह जाते हो।
खैर, समय बहुत हो चुका था और अब बारी आई केक काटने की…
हॉल के बीचों बीच एक गोल मेज़ पर बहुत ही खूबसूरत सा केक सजा हुआ था और उसके ऊपर बस एक मोमबत्ती लगी हुई थी, उस एक मोमबत्ती को देख कर मेरे होठों पे बरबस एक मुस्कान उभर गई..
‘लड़कियाँ चाहे छोटे शहर की हों या बड़े शहर की… अपनी उम्र छिपाने की आदत सब में एक जैसी ही होती है…’ मैंने मन ही मन में सोच कर ज्योति की तरफ देखा और एक हल्की सी मुस्कान दे दी।
ज्योति शायद मेरे मुस्कुराने की वजह समझ गई और तभी धीरे से मेरे करीब आकर सबकी नज़रों से बचते हुए मेरे कान में धीरे से कहा- समीर बाबू… लड़कियों की उम्र तो बस निगाहों से ही नाप कर समझनी होती है।
मैं एकटक उसे देखता ही रह गया और फिर धीरे से मुस्कुरा कर रह गया…
कमरे की सारी बत्तियाँ बुझ गई और फिर ज्योति ने फूंक मार कर मोमबत्ती बुझाई और हम सबने तालियाँ बजाकर और वही पुराना ऐतिहासिक जन्मदिन का गाना गाकर उसे बधाईयाँ दी।
हम सबने मिलकर केक खाया और फिर सबने ज्योति को तोहफे देना शुरू किए…
इस एक क्षण में मुझे बड़ा अजीब सा लगा… वहाँ सब के हाथों में कुछ न कुछ था जो वो ज्योति को दे रहे थे.. मैं अकेला खाली हाथ था… मेरे चेहरे पे शर्मिंदगी के भाव उभर आये और मैं ज्योति से नज़रें चुराने लगा…
कहते हैं लड़कियों को ऊपर वाले ने कुछ ख़ास गुण दिए हैं, और उनमें एक गुण यह भी है कि वो लड़कों के चेहरे पे आये भावों को पढ़ लेती हैं…
ऐसा ही हुआ…
मेरे बगल में खड़ी वंदना ने मेरे चेहरे के भावों को पढ़ लिया और ठीक उसी समय ज्योति की निगाहों ने भी मेरे चेहरे को पढ़ना शुरू किया और फिर उसने वंदना की तरफ देखा… दोनों सहेलियों ने एक दूसरे को आँखों ही आँखों में सारी बातें समझा दीं।
सहसा मेरे कानों में ज्योति की आवाज़ सुनाई दी…
‘आप सबका इन खूबसूरत तोहफों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद… लेकिन यहाँ एक शख्स ऐसे भी हैं जो खाली हाथ आये हैं… और उन्हें इसकी सजा मिलेगी…’ ज्योति ने सीधा मेरी तरफ ऊँगली से इशारा कर दिया।
अचानक से सारे लोगों की निगाहें मेरी तरफ हो गईं और मैं तो शर्म से पानी पानी सा हो गया।
‘समीर बाबू, डरिये मत… आपको इतनी भी बड़ी सजा नहीं मिलेगी…’ ज्योति ने शरारत भरे लहजे में मुस्कुराते हुए कहा और चलती हुई मेरी तरफ बढ़ी।
मेरे सीने की धड़कन बढ़ गई… पता नहीं अब क्या करना पड़े…!!
ज्योति मेरे बगल में आकर खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर बाकी सब की तरफ देख कर बोलने लगी- दोस्तो, हमारे समीर जी बहुत अच्छा गाते हैं और उनके गानों की तारीफ़ मैंने कई बार सुनी है… तो आज इनकी सजा यही है कि आज मेरे जन्मदिन के मौके पर समीर जी हम सबको एक प्यारा सा गाना सुनायेंगे… तालियाँ !
एक ही सांस में उस लड़की ने सबकुछ कह दिया और वहाँ मौजूद सभी ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं।
मुझे तो मानो शॉक सा लग गया… कई सवाल कौंध गए मेरे ख्यालों में…
आप सबको यह बता दूँ कि मुझे संगीत का बहुत शौक रहा है बचपन से और ऊपर वाले ने मुझे यह नेमत बख्शी है कि मैं ठीक-ठाक गा लेता हूँ… मैं और मेरे दोस्तों ने मिलकर एक बैंड भी बना रखा है जिसमें मैं गिटार बजा लेता हूँ और अपने बैंड का लीड सिंगर भी हूँ।
लेकिन मेरी इस बात का पता ज्योति को कैसे चला, यह सोच कर हैरान था… हैरानी इसलिए ज्यादा थी कि मैंने तो कभी वंदना को भी नहीं बताया था इस बारे में… पता नहीं यह सीक्रेट कैसे पता लगा इन्हें !!
खैर अब कोई चारा नहीं बचा था… और पिछले कुछ देर के दरम्यान वंदना के साथ रास्ते में बिठाये उन हसीन पलों की वजह से मेरा मूड बहुत अच्छा था… मैंने भी सोचा कि चलो उस प्यारी सी लड़की के जन्मदिन पर इतना तो करना बनता है।
‘तुमको देखा तो ये ख़याल आया… ज़िन्दगी धूप तुम घना साया..’
वो पल मेरे लिए बहुत ही खूबसूरत हो गया था… वंदना एकटक मेरे चेहरे पे अपनी नज़रें जमाये मेरे होठों से निकलते हर एक लफ्ज़ को इतनी संजीदगी से सुन रही थी मानो मेरा हर लफ्ज़ अपने अन्दर समां लेना चाह रही हो…
मेरे सबसे चहेते जगजीत सिंह जी की बेहतरीन ग़ज़ल गाकर मैंने वहाँ मौजूद सबका दिल जीत लिया।
जैसे ही मैंने गाना ख़त्म किया, ज्योति दौड़कर मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई… मुझे गले लगाकर उसने मेरा धन्यवाद किया… और फिर सबने तालियाँ बजाकर मेरा अभिवादन किया।
कुल मिलकर बड़ा ही खुशनुमा सा महल बन गया था… फिर हम सबने मिलकर खाना खाया और धीरे धीरे मेहमानों ने विदाई ली और मैंने भी वंदना को इशारा किया कि अब चलना चाहिए।
घड़ी की सुइयाँ दस बजा रही थीं और मौसम भी खराब था।
वंदना और ज्योति अब भी एक दूसरे से चिपकी हुई थीं… दोनों मेरे पास आईं और दोनों के चेहरे पे दिल को घायल कर देने वाली मुस्कान बिखरी पड़ी थी।
‘क्यूँ समीर जी, लगता है आपको हमारा साथ अच्छा नहीं लग रहा है… तभी आप घर जाने के लिए इतना हड़बड़ा रहे हो..’ ज्योति ने ऐसे शरारत से पूछा मनो वो कह कुछ और रही हो और पूछ कुछ और!
‘अरे ऐसी बात नहीं है ज्योति जी… वंदना के पापा ने हमे हिदायत दी थी कि हम समय से घर पहुँच जाएँ… वरना मैं तो वैसे भी निशाचर हूँ… रात भर जागने की बीमारी है मुझे!’ मैंने भी मुस्कुराते हुए ज्योति की तरफ देख कर जवाब दिया।
‘ओफ्फो… तो आपको रात भर जागने की बीमारी है… फिर तो भगवान् ही बचाए आपसे… रात भर खुद भी जागेंगे और दूसरों को भी जगाये रखेंगे!’ ज्योति ने यह कहते हुए वंदना की तरफ देख कर आँख मार दी और खिलखिला कर हंस दी।
वंदना ने ज्योति के हाथों पे चिकोटी काट ली- …शैतान कहीं की…
ज्योति की बातों का मतलब मैं समझ गया था और मेरे होठों पे भी मुस्कान आ गई- घबराइए नहीं ज्योति जी… हम किसी को भी जबरदस्ती नहीं जगाये रखते… हमेशा दूसरों की चाहत का ख़याल रखते हैं…
मैंने भी अब ज्योति के दोअर्थी बातों का जवाब उसी के अंदाज़ में दिया।
‘हाय राम… अगर आप जैसा जगाने वाला हो तो मैं तो सारी उम्र जागने को तैयार हूँ…’ फिर से उसने शरारती अंदाज़ में कहा और इस बार मुझे ही आँख मार दी।
‘फिर तो हमारी खूब जमेगी…’ इस बार मैंने हल्के से उसे आँख मरते हुए कहा और हम तीनों एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े।
खैर अब हम ज्योति के घर से बाहर निकले और उससे विदा ली… बाहर अब भी हल्की हल्की बारिश हो रही थी… ऐसी बारिश मुझे बहुत पसंद है, मेरा मन झूम उठा…
मैंने ज्योति से हाथ मिलाकर बाय कहा और वंदना ने उसे गले से लगा कर!
हम दोनों कार में बैठ गए और धीरे धीरे ज्योति की आँखों से ओझल होते हुए सड़क पर आ गये, हम दोनों के बीच ख़ामोशी थी। हम धीरे धीरे चले जा रहे थे.. अचानक फिर से बारिश तेज़ होने लगी और बिजलियाँ कड़कने लगीं।
बिजलियों की चमक में मेरा ध्यान वंदना के ऊपर गया तो मैंने उसके चेहरे पे डर का भाव देखा जो घर से आते वक़्त भी देखा था।
एक बात थी दोस्तो,, जब हम घर से ज्योति के यहाँ आने के लिए चले थे तब और अब जब लौट रहे थे तब, मेरे और वंदना के बीच सबकुछ बदल सा गया था… क्यूंकि उस वक़्त मैं रेणुका जी के बारे में सोच सोच कर परेशां था और वंदना की तरफ ध्यान ही नहीं लगा पा रहा था, लेकिन वो कहते हैं न कि अक्सर कुछ पलों में जिंदगियाँ बदल जाती हैं… तो वैसा ही कुछ एहसास हो रहा था।
मैं यह नहीं कह रहा कि मुझे प्यार हो गया था.. क्यूंकि मैं यूँ एक नज़र में होने वाले प्यार और कुछ पलों में होने वाले प्यार पे यकीन नहीं करता, लेकिन एक बात जरूर मानता हूँ कि कुछ बदलाव जरूर आ जाते हैं कुछ पलों में…
मेरे होठों पे बरबस ही मुस्कान आ गई और अब मैं चोर नज़रों से अपने पास बैठी उस चंचल शोख़ हसीना के रूप और सौन्दर्य को निहारने लगा…
उसके चेहरे पे उसके बालों की एक लट बार-बार उसे परेशान कर रही थी और वो बार-बार उसे हटाने की कोशिश करे जा रही थी। अपनी धुन में बेखबर और कार में बज रहे हलके से संगीत पे हौले-हौले गुनगुनाती अपने लट को संभालती बाहर हो रही बारिश को निहारती वंदना मुझे अपनी तरफ खींचने लगी थी।
मैं उसे पसंद करने लगा था… और ये सहसा ही हुआ था।
मुझे यकीन होने लगा था कि अगर मैं रेणुका के मोह में इतना न उलझा होता तो शायद ये मेरे पास बैठी ख़ूबसूरत सी लड़की अब तक मेरे बाहुपाश में समां चुकी होती और शायद हम कई बार प्रेम के फूल खिला चुके होते।
यह सोच कर कर मैं मुस्कुराने लगा और धीरे से सड़क के किनारे एक बड़े से पेड़ के नीचे कार रोक दी।
कार रुकते ही वंदन ने मेरी तरफ देखा और फिर बड़े ही प्यार से अपनी आँखें नीचे कर लीं…
उसकी इस अदा ने मुझे घायल ही कर दिया.. मैं अब भी उसे देखे जा रहा था…
कहाँ तो थोड़ी देर पहले तक मैं वंदना को इतना सीरियसली नहीं ले रहा था लेकिन कुछ घंटे साथ में बिताने के बाद ही मैं उसकी तरफ आकर्षित होता जा रहा था…
बाहर तेज़ बारिश की बूंदों की आवाज़ और अन्दर एक गहरी ख़ामोशी…
‘खूबसूरत लड़कियों को देख कर बड़े ही रोमांटिक गज़लें निकल रही थीं जनाब के गले से…’ उस ख़ामोशी को तोड़ती हुई वंदना की आवाज़ मेरे कानों में पहुँची।
जब मैंने ध्यान से देखा तो अपना सर नीचे किये हुए ही बस अपनी कातिलाना निगाहों को तिरछी करके उसने मुझे ताना मारा।
कहानी जारी रहेगी।
जिस्म की जरूरत-13
थोड़ी देर हम सब यूँ ही एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते रहे और इस पूरे समय के दरम्यान वंदना मुझसे चिपक कर रही और अपने हाथों से मेरा हाथ पकड़े रखा, उसके हाथों में मेरा हाथ यूँ देख कर लड़कियाँ तिरछी निगाहों से देख देख कर मुस्कुराती रहीं तो वहीं लड़कों की आँखों में मुझे जलन साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी।
आखिर मैं भी एक लड़का हूँ और मुझे पता है उस एहसास के बारे में जब आपके क्लास की सबसे खूबसूरत लड़की किसी और का हाथ थामे बैठी हो और आप बस अपना मन मसोस कर रह जाते हो।
खैर, समय बहुत हो चुका था और अब बारी आई केक काटने की…
हॉल के बीचों बीच एक गोल मेज़ पर बहुत ही खूबसूरत सा केक सजा हुआ था और उसके ऊपर बस एक मोमबत्ती लगी हुई थी, उस एक मोमबत्ती को देख कर मेरे होठों पे बरबस एक मुस्कान उभर गई..
‘लड़कियाँ चाहे छोटे शहर की हों या बड़े शहर की… अपनी उम्र छिपाने की आदत सब में एक जैसी ही होती है…’ मैंने मन ही मन में सोच कर ज्योति की तरफ देखा और एक हल्की सी मुस्कान दे दी।
ज्योति शायद मेरे मुस्कुराने की वजह समझ गई और तभी धीरे से मेरे करीब आकर सबकी नज़रों से बचते हुए मेरे कान में धीरे से कहा- समीर बाबू… लड़कियों की उम्र तो बस निगाहों से ही नाप कर समझनी होती है।
मैं एकटक उसे देखता ही रह गया और फिर धीरे से मुस्कुरा कर रह गया…
कमरे की सारी बत्तियाँ बुझ गई और फिर ज्योति ने फूंक मार कर मोमबत्ती बुझाई और हम सबने तालियाँ बजाकर और वही पुराना ऐतिहासिक जन्मदिन का गाना गाकर उसे बधाईयाँ दी।
हम सबने मिलकर केक खाया और फिर सबने ज्योति को तोहफे देना शुरू किए…
इस एक क्षण में मुझे बड़ा अजीब सा लगा… वहाँ सब के हाथों में कुछ न कुछ था जो वो ज्योति को दे रहे थे.. मैं अकेला खाली हाथ था… मेरे चेहरे पे शर्मिंदगी के भाव उभर आये और मैं ज्योति से नज़रें चुराने लगा…
कहते हैं लड़कियों को ऊपर वाले ने कुछ ख़ास गुण दिए हैं, और उनमें एक गुण यह भी है कि वो लड़कों के चेहरे पे आये भावों को पढ़ लेती हैं…
ऐसा ही हुआ…
मेरे बगल में खड़ी वंदना ने मेरे चेहरे के भावों को पढ़ लिया और ठीक उसी समय ज्योति की निगाहों ने भी मेरे चेहरे को पढ़ना शुरू किया और फिर उसने वंदना की तरफ देखा… दोनों सहेलियों ने एक दूसरे को आँखों ही आँखों में सारी बातें समझा दीं।
सहसा मेरे कानों में ज्योति की आवाज़ सुनाई दी…
‘आप सबका इन खूबसूरत तोहफों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद… लेकिन यहाँ एक शख्स ऐसे भी हैं जो खाली हाथ आये हैं… और उन्हें इसकी सजा मिलेगी…’ ज्योति ने सीधा मेरी तरफ ऊँगली से इशारा कर दिया।
अचानक से सारे लोगों की निगाहें मेरी तरफ हो गईं और मैं तो शर्म से पानी पानी सा हो गया।
‘समीर बाबू, डरिये मत… आपको इतनी भी बड़ी सजा नहीं मिलेगी…’ ज्योति ने शरारत भरे लहजे में मुस्कुराते हुए कहा और चलती हुई मेरी तरफ बढ़ी।
मेरे सीने की धड़कन बढ़ गई… पता नहीं अब क्या करना पड़े…!!
ज्योति मेरे बगल में आकर खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर बाकी सब की तरफ देख कर बोलने लगी- दोस्तो, हमारे समीर जी बहुत अच्छा गाते हैं और उनके गानों की तारीफ़ मैंने कई बार सुनी है… तो आज इनकी सजा यही है कि आज मेरे जन्मदिन के मौके पर समीर जी हम सबको एक प्यारा सा गाना सुनायेंगे… तालियाँ !
एक ही सांस में उस लड़की ने सबकुछ कह दिया और वहाँ मौजूद सभी ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं।
मुझे तो मानो शॉक सा लग गया… कई सवाल कौंध गए मेरे ख्यालों में…
आप सबको यह बता दूँ कि मुझे संगीत का बहुत शौक रहा है बचपन से और ऊपर वाले ने मुझे यह नेमत बख्शी है कि मैं ठीक-ठाक गा लेता हूँ… मैं और मेरे दोस्तों ने मिलकर एक बैंड भी बना रखा है जिसमें मैं गिटार बजा लेता हूँ और अपने बैंड का लीड सिंगर भी हूँ।
लेकिन मेरी इस बात का पता ज्योति को कैसे चला, यह सोच कर हैरान था… हैरानी इसलिए ज्यादा थी कि मैंने तो कभी वंदना को भी नहीं बताया था इस बारे में… पता नहीं यह सीक्रेट कैसे पता लगा इन्हें !!
खैर अब कोई चारा नहीं बचा था… और पिछले कुछ देर के दरम्यान वंदना के साथ रास्ते में बिठाये उन हसीन पलों की वजह से मेरा मूड बहुत अच्छा था… मैंने भी सोचा कि चलो उस प्यारी सी लड़की के जन्मदिन पर इतना तो करना बनता है।
‘तुमको देखा तो ये ख़याल आया… ज़िन्दगी धूप तुम घना साया..’
वो पल मेरे लिए बहुत ही खूबसूरत हो गया था… वंदना एकटक मेरे चेहरे पे अपनी नज़रें जमाये मेरे होठों से निकलते हर एक लफ्ज़ को इतनी संजीदगी से सुन रही थी मानो मेरा हर लफ्ज़ अपने अन्दर समां लेना चाह रही हो…
मेरे सबसे चहेते जगजीत सिंह जी की बेहतरीन ग़ज़ल गाकर मैंने वहाँ मौजूद सबका दिल जीत लिया।
जैसे ही मैंने गाना ख़त्म किया, ज्योति दौड़कर मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई… मुझे गले लगाकर उसने मेरा धन्यवाद किया… और फिर सबने तालियाँ बजाकर मेरा अभिवादन किया।
कुल मिलकर बड़ा ही खुशनुमा सा महल बन गया था… फिर हम सबने मिलकर खाना खाया और धीरे धीरे मेहमानों ने विदाई ली और मैंने भी वंदना को इशारा किया कि अब चलना चाहिए।
घड़ी की सुइयाँ दस बजा रही थीं और मौसम भी खराब था।
वंदना और ज्योति अब भी एक दूसरे से चिपकी हुई थीं… दोनों मेरे पास आईं और दोनों के चेहरे पे दिल को घायल कर देने वाली मुस्कान बिखरी पड़ी थी।
‘क्यूँ समीर जी, लगता है आपको हमारा साथ अच्छा नहीं लग रहा है… तभी आप घर जाने के लिए इतना हड़बड़ा रहे हो..’ ज्योति ने ऐसे शरारत से पूछा मनो वो कह कुछ और रही हो और पूछ कुछ और!
‘अरे ऐसी बात नहीं है ज्योति जी… वंदना के पापा ने हमे हिदायत दी थी कि हम समय से घर पहुँच जाएँ… वरना मैं तो वैसे भी निशाचर हूँ… रात भर जागने की बीमारी है मुझे!’ मैंने भी मुस्कुराते हुए ज्योति की तरफ देख कर जवाब दिया।
‘ओफ्फो… तो आपको रात भर जागने की बीमारी है… फिर तो भगवान् ही बचाए आपसे… रात भर खुद भी जागेंगे और दूसरों को भी जगाये रखेंगे!’ ज्योति ने यह कहते हुए वंदना की तरफ देख कर आँख मार दी और खिलखिला कर हंस दी।
वंदना ने ज्योति के हाथों पे चिकोटी काट ली- …शैतान कहीं की…
ज्योति की बातों का मतलब मैं समझ गया था और मेरे होठों पे भी मुस्कान आ गई- घबराइए नहीं ज्योति जी… हम किसी को भी जबरदस्ती नहीं जगाये रखते… हमेशा दूसरों की चाहत का ख़याल रखते हैं…
मैंने भी अब ज्योति के दोअर्थी बातों का जवाब उसी के अंदाज़ में दिया।
‘हाय राम… अगर आप जैसा जगाने वाला हो तो मैं तो सारी उम्र जागने को तैयार हूँ…’ फिर से उसने शरारती अंदाज़ में कहा और इस बार मुझे ही आँख मार दी।
‘फिर तो हमारी खूब जमेगी…’ इस बार मैंने हल्के से उसे आँख मरते हुए कहा और हम तीनों एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े।
खैर अब हम ज्योति के घर से बाहर निकले और उससे विदा ली… बाहर अब भी हल्की हल्की बारिश हो रही थी… ऐसी बारिश मुझे बहुत पसंद है, मेरा मन झूम उठा…
मैंने ज्योति से हाथ मिलाकर बाय कहा और वंदना ने उसे गले से लगा कर!
हम दोनों कार में बैठ गए और धीरे धीरे ज्योति की आँखों से ओझल होते हुए सड़क पर आ गये, हम दोनों के बीच ख़ामोशी थी। हम धीरे धीरे चले जा रहे थे.. अचानक फिर से बारिश तेज़ होने लगी और बिजलियाँ कड़कने लगीं।
बिजलियों की चमक में मेरा ध्यान वंदना के ऊपर गया तो मैंने उसके चेहरे पे डर का भाव देखा जो घर से आते वक़्त भी देखा था।
एक बात थी दोस्तो,, जब हम घर से ज्योति के यहाँ आने के लिए चले थे तब और अब जब लौट रहे थे तब, मेरे और वंदना के बीच सबकुछ बदल सा गया था… क्यूंकि उस वक़्त मैं रेणुका जी के बारे में सोच सोच कर परेशां था और वंदना की तरफ ध्यान ही नहीं लगा पा रहा था, लेकिन वो कहते हैं न कि अक्सर कुछ पलों में जिंदगियाँ बदल जाती हैं… तो वैसा ही कुछ एहसास हो रहा था।
मैं यह नहीं कह रहा कि मुझे प्यार हो गया था.. क्यूंकि मैं यूँ एक नज़र में होने वाले प्यार और कुछ पलों में होने वाले प्यार पे यकीन नहीं करता, लेकिन एक बात जरूर मानता हूँ कि कुछ बदलाव जरूर आ जाते हैं कुछ पलों में…
मेरे होठों पे बरबस ही मुस्कान आ गई और अब मैं चोर नज़रों से अपने पास बैठी उस चंचल शोख़ हसीना के रूप और सौन्दर्य को निहारने लगा…
उसके चेहरे पे उसके बालों की एक लट बार-बार उसे परेशान कर रही थी और वो बार-बार उसे हटाने की कोशिश करे जा रही थी। अपनी धुन में बेखबर और कार में बज रहे हलके से संगीत पे हौले-हौले गुनगुनाती अपने लट को संभालती बाहर हो रही बारिश को निहारती वंदना मुझे अपनी तरफ खींचने लगी थी।
मैं उसे पसंद करने लगा था… और ये सहसा ही हुआ था।
मुझे यकीन होने लगा था कि अगर मैं रेणुका के मोह में इतना न उलझा होता तो शायद ये मेरे पास बैठी ख़ूबसूरत सी लड़की अब तक मेरे बाहुपाश में समां चुकी होती और शायद हम कई बार प्रेम के फूल खिला चुके होते।
यह सोच कर कर मैं मुस्कुराने लगा और धीरे से सड़क के किनारे एक बड़े से पेड़ के नीचे कार रोक दी।
कार रुकते ही वंदन ने मेरी तरफ देखा और फिर बड़े ही प्यार से अपनी आँखें नीचे कर लीं…
उसकी इस अदा ने मुझे घायल ही कर दिया.. मैं अब भी उसे देखे जा रहा था…
कहाँ तो थोड़ी देर पहले तक मैं वंदना को इतना सीरियसली नहीं ले रहा था लेकिन कुछ घंटे साथ में बिताने के बाद ही मैं उसकी तरफ आकर्षित होता जा रहा था…
बाहर तेज़ बारिश की बूंदों की आवाज़ और अन्दर एक गहरी ख़ामोशी…
‘खूबसूरत लड़कियों को देख कर बड़े ही रोमांटिक गज़लें निकल रही थीं जनाब के गले से…’ उस ख़ामोशी को तोड़ती हुई वंदना की आवाज़ मेरे कानों में पहुँची।
जब मैंने ध्यान से देखा तो अपना सर नीचे किये हुए ही बस अपनी कातिलाना निगाहों को तिरछी करके उसने मुझे ताना मारा।
कहानी जारी रहेगी।
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