कामना की कामवासना-1
Kamna Ki Kaamvasna-1
प्रिये अन्तर्वासना के पाठको, कृपया मेरा अभिनन्दन स्वीकार करके मुझे अनुगृहीत कीजिये।
आज मैं अपनी एक बचपन की सखी कामना रस्तोगी (जो आजकल अमेरिका में रहती है) के जीवन में घटित एक घटना का विवरण आप सबको बता रही हूँ जो उसके जीवन में लगभग तीन वर्ष पहले घटित हुई थी।
मैं तो इस घटना से तब से परिचित थी जब वह मेरी सखी के जीवन में घटी थी और उसने तब मेरे साथ साझा करी थी।
लेकिन मेरी सखी की अनुमति नहीं होने के कारण मैं आज तक उसे लिख कर आप सब के मनोरंजन के लिए प्रकाशित नहीं करवा सकी थी।
एक सप्ताह पहले मेरी सखी ने खुद ही उस घटना का विवरण लिख कर मुझे भेजा था और मुझे उसे सम्पादित करके अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने के लिए कहा था।
मैंने उसके द्वारा भेजी गई रचना में शब्दावली, व्याकरण और लेखन में सुधार करके आप के लिए प्रस्तुत कर रही हूँ और आशा करती हूँ की यह आप सब को अवश्य पसंद आएगी।
मेरी सखी की रचना जो उसकी के शब्दों में लिखी हुई है कुछ इस प्रकार से है:
अन्तर्वासना पाठक परिवार के सदस्यों को मेरा प्रणाम।
मेरा नाम कामना है और मुझे कामवासना में बहुत रूचि है तथा मुझे उससे जुड़ी अच्छी रचनाएँ पढ़ने की बहुत कामना भी रहती है।
मैं पिछले एक वर्ष से अन्तर्वासना में प्रकाशित रचनाएँ पढ़ रही हूँ और उन में से मुझे कुछ रचनाएँ तो सच्ची एवं बहुत ही रोचक लगी लेकिन बहुत सी रचनाएँ तो बिलकुल अविश्वासनीय एवं घिनौनी लगी हैं।
इस प्रसंग पर आगे बात न करते हुए मैं अपने जीवन की अनेक घटनाओं में से घटित एक घटना का विवरण आप सब के साथ साझा करना चाहूँगी।
चार वर्ष पहले मेरी शादी बंगलौर वासी अजय रस्तोगी के साथ हुई थी और मैं अपने पति और विधुर ससुरजी के साथ हंसी-ख़ुशी बंगलौर में ही रहती थी।
मेरे पति एक आई टी इंजिनियर हैं और वह बंगलौर में एक आई टी कंपनी में कार्य करते थे तथा मेरे ससुरजी भी वहीं पर एक बैंक में उच्च अधिकारी लगे हुए थे।
एक वर्ष के बाद मेरे पति को अमरीका की एक कंपनी में नौकरी मिल गई तब वह तो तुरंत वहाँ चले गए और मुझे अमरीका का वीसा मिलने में छह माह लग गए।
उन्हीं छह माह के शुरुआत में ही जो घटना मेरे साथ घटी मैं उसी का विवरण आप से साझा कर रही हूँ।
पति को अमरीका गए अभी तीन सप्ताह ही हुए थे की एक दिन जब मैं अपने ससुरजी के साथ मार्किट में खरीदारी कर के घर आ रहे थे तब हमारे ऑटो का एक्सीडेंट हो गया और वह पलटी हो गया।
उस एक्सीडेंट में मेरे ससुरजी को तो कुछ खरोंचे ही आई थी लेकिन मुझे बहुत चोटें लगी थी जिसमें मेरे दोनों बाजुओं की हड्डियों में फ्रैक्चर हो गए थे और उन पर आठ सप्ताह के लिए प्लास्टर चढ़ा दिया गया था।
मेरी टांगों और घुटनों पर भी काफी चोंटें आई थी जिस के कारण मेरा उठाना बैठना भी मुश्किल हो गया था और डॉक्टर ने मुझे दो सप्ताह के लिए बिस्तर पर ही लेटे रहने की सलाह दे दी थी।
मेरी यह हालत देख कर ससुरजी ने मेरी देख-रेख एवं घर के काम के लिए पूरे दिन के लिए एक कामवाली रख दी।
वह कामवाली सुबह छह बजे आती थी और पूरा दिन मेरा और घर का सभी काम करती तथा रात को नौ बजे डिनर खिला कर अपने घर चली जाती थी।
अंगों पर लगी चोट और बाजुओं पर बंधे प्लास्टर के कारण मैं अधिक कपड़े नहीं पहन पाती थी इसलिए मैं दिन-रात सिर्फ गाउन या नाइटी ही पहने रहती थी!
मैं नहा तो सकती नहीं थी इसलिए काम वाली बाई दिन में मेरे पूरे शरीर को गीले तौलिये से पोंछ कर मुझे गाउन या नाइटी पहनाने में मदद कर देती थी।
क्योंकि मुझे बाथरूम में जाकर पेशाब आदि करने में कोई परेशानी नहीं हो इसलिए मैं पैंटी भी नहीं पहनती थी।
इस तरह दुःख और तकलीफ में एक सप्ताह ही बीता था की मेरे ऊपर एक और मुसीबत ने आक्रमण कर दिया।
उस रात को लगभग ग्यारह बजे जब मैं सो रही थी तब मुझे मेरी जाँघों के बीच में गीलापन महसूस हुआ और मेरी नींद खुल गई।
मेरी परेशानी और भी अधिक बढ़ गई क्योंकि मेरे दोनों बाजुओं में प्लास्टर लगे होने के कारण मैं अपने हाथों से वह गीलापन क्यों और कैसा है इसका पता भी नहीं लगा पा रही थी।
वह गीलापन नीचे की ओर बह कर मेरी नाइटी और बिस्तर को भी गीला करने लगा था जिस के कारण मुझे कुछ अधिक असुविधा होने लगी थी।
दो घंटे तक उस गीलेपन पर लेटे रहने के बाद जब मेरे सयम का बाँध टूट गया तब मैंने ससुरजी को आवाज़ लगा कर बुलाया और उन्हें अपनी समस्या बताई।
मेरी बात सुन कर ससुरजी ने जब मुझे थोड़ा सा सरका कर बिस्तर के गीलेपन को देखा तो अवाक हो कर मेरी ओर देखने लगे थे।
मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की मेरी टांगों, नाइटी और बिस्तर पर गीलापन महसूस होने का कारण मेरी योनि में से खून का रिसाव है।
ससुरजी के मुख से मेरी योनि में से खून का रिसाव की बात सुनते ही मेरा माथा ठनका और मैं समझ गई कि मुझे मासिक-धर्म आ गया था और वह गीलापन उसी के कारण था।
लेकिन मेरी दुविधा कम होने के बजाये और भी अधिक बढ़ गई थी क्योंकि मैं यह निर्णय नहीं कर पा रही थी कि मैं अपनी सफाई कैसे करूँ।
तभी ससुरजी ने कहा– तुम्हें बाथरूम तक पहुँचाने के लिए मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ और तुम वहाँ जाकर अपने आप को साफ़ कर लो। तब तक मैं तुम्हारे इस बिस्तर की चादर आदि बदल देता हूँ।
ससुरजी की बात सुन कर अकस्मात मेरे मुख से निकल गया- पापाजी, इन बंधे हाथों से मैं अपनी सफाई कैसे कर सकती हूँ?
मेरी बात सुन कर ससुरजी कुछ देर तो चुप रहे लेकिन फिर बोले- तो तुम ही बताओ क्या करें? क्या कल सुबह काम वाली के आने तक ऐसे ही इसी तरह मैले में ही पड़ी रहोगी?
उनकी बात सुन कर कुछ देर तो मैं संकुचाई फिर हिम्मत कर के बोली- पापाजी, रात भर मैले में तो मैं पड़ी नहीं रह सकती इसीलिए तो आप को आवाज़ लगाईं थी। क्यों नहीं आप ही मेरी सफाई करने में मदद कर देते?
मेरी बात सुनते ही उन्होंने उत्तर दिया- नहीं कामना, यह मुझसे नहीं हो पायेगा और यह ठीक भी नहीं है। एक ससुर और बहु के बीच में जो पर्दा, मर्यादा और दूरी होती है तुम उसे तोड़ने के लिए कह रही हो।
मैंने तुरंत बोला- पापाजी हमारे पास और कोई चारा भी तो नहीं है। मेरे लिए तो आप मेरी सास और ससुर दोनों ही हो इसलिए क्यों नहीं आप मेरा यह काम मेरी सास की तरह फर्ज़ समझ कर निभा दीजिये।
मेरी बात सुन कर ससुरजी पहले तो चुप हो कर खड़े रहे और फिर अपना सिर को नकारात्मक हिलाते हुए मेरे कमरे बाहर चले गए।
पन्द्रह मिनट तक मैं अपने बिस्तर पर चिंतित पड़ी यही सोच रही थी कि अब आगे क्या करूँ तभी ससुरजी कमरे में लौट कर आये और बोले- कामना, मैं तुम्हे मैले में नहीं पड़ा रहने दे सकता, इसलिए तुम्हारी सफाई करने को तैयार हूँ। लेकिन मुझे नहीं मालूम की वह कैसे करते हैं इसलिए तुम्हें मुझे बताना होगा कि मैं क्या और कैसे करूँ…
ससुरजी की बात सुन मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी हुई क्योंकि जीवन में पहली बार मेरी मम्मी, पापा और पति के इलावा कोई अन्य इंसान मेरे गुप्तांगों को देखेगा या फिर छुएगा।
लेकिन मैंने अपने मन को संयम में रखते हुए उन्हें मुझे बाथरूम में ले जाने में मदद करने के लिए कहा।
तब उन्होंने मुझे सहारा देकर उठाया और कमर से पकड़ कर बाथरूम ले गए तथा मेरे कहने पर मुझे पॉट पर बिठा दिया।
पॉट पर बैठने के बाद मैंने उन्हें कहा- अब आप मेरी नाइटी उतरवा कर कमरे में लकड़ी की अलमारी में से मेरी एक पैंटी, एक नाइटी तथा ड्रेसिंग टेबल के दराज़ में से सेनेटरी नैपकिन का पैकेट लेते आइये।
मेरे कहे अनुसार उन्होंने मेरी नाइटी को नीचे से पकड़ ऊपर की ओर खींच कर मेरे शरीर से अलग करके धोने वाले कपड़ों में रख कर बाथरूम से बाहर चले गए।
थोड़ी देर में ससुरजी मेरे बिस्तर की चादर बदल कर और मेरी पैंटी, नाइटी और नैपकिन लेकर बाथरूम में आये तब तक मैंने जोर लगा कर अपनी योनि में से खून का सारा रिसाव बाहर निकाल दिया था।
ससुरजी के पूछने पर कि आगे क्या करना है तब मैंने उन्हें मेरी योनि को धोने के लिए कहा।
मेरी बात सुन कर पहले तो वे थोड़ा झिझके लेकिन फिर एक मग में पानी ले कर आये और मेरी टाँगे चौड़ी करके मेरी योनि पर पानी डाल कर धोने लगे।
तब मैंने उनसे कहा- पापाजी, ऐसे पानी डालने से सफाई नहीं होगी। आप अपने हाथ में पानी ले कर मेरी योनि को मल मल कर धोयेंगे तभी खून साफ़ होगा।
मेरी बात को समझ कर उन्होंने मेरी योनि पर अपने हाथ से पानी का छींटा मार कर उसे हाथ से ही मल कर साफ़ करने लगे।
उनका हाथ लगते ही मेरा पूरा शरीर रोमांचित हो उठा और मेरे शरीर के रोयें खड़े होने लगे!
लगभग चार सप्ताह के बाद मेरी योनि पर किसी मर्द का हाथ लगने से उसके अन्दर एक खलबली मच गई और मेरी सोई हुई कामवासना उत्तेजित हो उठी।
इतने में ससुरजी ने मेरी योनि पर पानी के पांच-छह छींटे मार कर उसे मल मल कर साफ़ कर दिया और पूछा- कामना, लो अब यह तो बिलकुल साफ़ हो गई है! अब और क्या करना है।
तब मैंने उन्हें कह दिया- पापाजी, अभी इसके अन्दर खून भरा हुआ है। आप दो तीन बार अपनी बड़ी उंगली की इसके अंदर डाल कर थोड़ा घुमा दीजिये तो वह खून बाहर आ जायेगा, उसके बाद आप इसे बाहर से एक बार फिर धो दीजियेगा।
मेरी बात सुन कर उन्होंने जैसा मैंने कहा था वैसे ही अपनी बड़ी उंगली को कई बार मेरी योनि के अंदर घुमाया और जब उनकी उंगली पर खून लगना बंद हो गया तभी वह रुके।
क्योंकि मैं तो पहले से ही उत्तेजित थी इसलिए ससुरजी द्वारा आठ-दस बार योनि के अन्दर उंगली घुमाने के कारण खून के साथ मेरा योनि रस भी छूट कर बाहर निकल आया था जिसे उन्होंने पानी से धो कर साफ़ कर दिया।
इसके बाद मैं पॉट से उठी और अपनी टाँगे चौड़ी करके खड़े होते हुए ससुर जी से कहा- पापाजी, उस पैकेट में से एक सेनेटरी नैपकिन निकाल कर मेरी पैंटी के अन्दर चिपका दीजिये और फिर वह पैंटी और नाइटी मुझे पहना दीजिये।
ससुरजी ने मेरे कहे अनुसार वह सब करके मुझे पैंटी पहनाने के बाद मुझे नाइटी पहनाई और फिर मुझे कमर से पकड़ कर सहारा देते हुए कमरे में लाकर मुझे बिस्तर पर लिटा दिया।
कहानी जारी रहेगी।
प्रिये अन्तर्वासना के पाठको, कृपया मेरा अभिनन्दन स्वीकार करके मुझे अनुगृहीत कीजिये।
आज मैं अपनी एक बचपन की सखी कामना रस्तोगी (जो आजकल अमेरिका में रहती है) के जीवन में घटित एक घटना का विवरण आप सबको बता रही हूँ जो उसके जीवन में लगभग तीन वर्ष पहले घटित हुई थी।
मैं तो इस घटना से तब से परिचित थी जब वह मेरी सखी के जीवन में घटी थी और उसने तब मेरे साथ साझा करी थी।
लेकिन मेरी सखी की अनुमति नहीं होने के कारण मैं आज तक उसे लिख कर आप सब के मनोरंजन के लिए प्रकाशित नहीं करवा सकी थी।
एक सप्ताह पहले मेरी सखी ने खुद ही उस घटना का विवरण लिख कर मुझे भेजा था और मुझे उसे सम्पादित करके अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने के लिए कहा था।
मैंने उसके द्वारा भेजी गई रचना में शब्दावली, व्याकरण और लेखन में सुधार करके आप के लिए प्रस्तुत कर रही हूँ और आशा करती हूँ की यह आप सब को अवश्य पसंद आएगी।
मेरी सखी की रचना जो उसकी के शब्दों में लिखी हुई है कुछ इस प्रकार से है:
अन्तर्वासना पाठक परिवार के सदस्यों को मेरा प्रणाम।
मेरा नाम कामना है और मुझे कामवासना में बहुत रूचि है तथा मुझे उससे जुड़ी अच्छी रचनाएँ पढ़ने की बहुत कामना भी रहती है।
मैं पिछले एक वर्ष से अन्तर्वासना में प्रकाशित रचनाएँ पढ़ रही हूँ और उन में से मुझे कुछ रचनाएँ तो सच्ची एवं बहुत ही रोचक लगी लेकिन बहुत सी रचनाएँ तो बिलकुल अविश्वासनीय एवं घिनौनी लगी हैं।
इस प्रसंग पर आगे बात न करते हुए मैं अपने जीवन की अनेक घटनाओं में से घटित एक घटना का विवरण आप सब के साथ साझा करना चाहूँगी।
चार वर्ष पहले मेरी शादी बंगलौर वासी अजय रस्तोगी के साथ हुई थी और मैं अपने पति और विधुर ससुरजी के साथ हंसी-ख़ुशी बंगलौर में ही रहती थी।
मेरे पति एक आई टी इंजिनियर हैं और वह बंगलौर में एक आई टी कंपनी में कार्य करते थे तथा मेरे ससुरजी भी वहीं पर एक बैंक में उच्च अधिकारी लगे हुए थे।
एक वर्ष के बाद मेरे पति को अमरीका की एक कंपनी में नौकरी मिल गई तब वह तो तुरंत वहाँ चले गए और मुझे अमरीका का वीसा मिलने में छह माह लग गए।
उन्हीं छह माह के शुरुआत में ही जो घटना मेरे साथ घटी मैं उसी का विवरण आप से साझा कर रही हूँ।
पति को अमरीका गए अभी तीन सप्ताह ही हुए थे की एक दिन जब मैं अपने ससुरजी के साथ मार्किट में खरीदारी कर के घर आ रहे थे तब हमारे ऑटो का एक्सीडेंट हो गया और वह पलटी हो गया।
उस एक्सीडेंट में मेरे ससुरजी को तो कुछ खरोंचे ही आई थी लेकिन मुझे बहुत चोटें लगी थी जिसमें मेरे दोनों बाजुओं की हड्डियों में फ्रैक्चर हो गए थे और उन पर आठ सप्ताह के लिए प्लास्टर चढ़ा दिया गया था।
मेरी टांगों और घुटनों पर भी काफी चोंटें आई थी जिस के कारण मेरा उठाना बैठना भी मुश्किल हो गया था और डॉक्टर ने मुझे दो सप्ताह के लिए बिस्तर पर ही लेटे रहने की सलाह दे दी थी।
मेरी यह हालत देख कर ससुरजी ने मेरी देख-रेख एवं घर के काम के लिए पूरे दिन के लिए एक कामवाली रख दी।
वह कामवाली सुबह छह बजे आती थी और पूरा दिन मेरा और घर का सभी काम करती तथा रात को नौ बजे डिनर खिला कर अपने घर चली जाती थी।
अंगों पर लगी चोट और बाजुओं पर बंधे प्लास्टर के कारण मैं अधिक कपड़े नहीं पहन पाती थी इसलिए मैं दिन-रात सिर्फ गाउन या नाइटी ही पहने रहती थी!
मैं नहा तो सकती नहीं थी इसलिए काम वाली बाई दिन में मेरे पूरे शरीर को गीले तौलिये से पोंछ कर मुझे गाउन या नाइटी पहनाने में मदद कर देती थी।
क्योंकि मुझे बाथरूम में जाकर पेशाब आदि करने में कोई परेशानी नहीं हो इसलिए मैं पैंटी भी नहीं पहनती थी।
इस तरह दुःख और तकलीफ में एक सप्ताह ही बीता था की मेरे ऊपर एक और मुसीबत ने आक्रमण कर दिया।
उस रात को लगभग ग्यारह बजे जब मैं सो रही थी तब मुझे मेरी जाँघों के बीच में गीलापन महसूस हुआ और मेरी नींद खुल गई।
मेरी परेशानी और भी अधिक बढ़ गई क्योंकि मेरे दोनों बाजुओं में प्लास्टर लगे होने के कारण मैं अपने हाथों से वह गीलापन क्यों और कैसा है इसका पता भी नहीं लगा पा रही थी।
वह गीलापन नीचे की ओर बह कर मेरी नाइटी और बिस्तर को भी गीला करने लगा था जिस के कारण मुझे कुछ अधिक असुविधा होने लगी थी।
दो घंटे तक उस गीलेपन पर लेटे रहने के बाद जब मेरे सयम का बाँध टूट गया तब मैंने ससुरजी को आवाज़ लगा कर बुलाया और उन्हें अपनी समस्या बताई।
मेरी बात सुन कर ससुरजी ने जब मुझे थोड़ा सा सरका कर बिस्तर के गीलेपन को देखा तो अवाक हो कर मेरी ओर देखने लगे थे।
मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की मेरी टांगों, नाइटी और बिस्तर पर गीलापन महसूस होने का कारण मेरी योनि में से खून का रिसाव है।
ससुरजी के मुख से मेरी योनि में से खून का रिसाव की बात सुनते ही मेरा माथा ठनका और मैं समझ गई कि मुझे मासिक-धर्म आ गया था और वह गीलापन उसी के कारण था।
लेकिन मेरी दुविधा कम होने के बजाये और भी अधिक बढ़ गई थी क्योंकि मैं यह निर्णय नहीं कर पा रही थी कि मैं अपनी सफाई कैसे करूँ।
तभी ससुरजी ने कहा– तुम्हें बाथरूम तक पहुँचाने के लिए मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ और तुम वहाँ जाकर अपने आप को साफ़ कर लो। तब तक मैं तुम्हारे इस बिस्तर की चादर आदि बदल देता हूँ।
ससुरजी की बात सुन कर अकस्मात मेरे मुख से निकल गया- पापाजी, इन बंधे हाथों से मैं अपनी सफाई कैसे कर सकती हूँ?
मेरी बात सुन कर ससुरजी कुछ देर तो चुप रहे लेकिन फिर बोले- तो तुम ही बताओ क्या करें? क्या कल सुबह काम वाली के आने तक ऐसे ही इसी तरह मैले में ही पड़ी रहोगी?
उनकी बात सुन कर कुछ देर तो मैं संकुचाई फिर हिम्मत कर के बोली- पापाजी, रात भर मैले में तो मैं पड़ी नहीं रह सकती इसीलिए तो आप को आवाज़ लगाईं थी। क्यों नहीं आप ही मेरी सफाई करने में मदद कर देते?
मेरी बात सुनते ही उन्होंने उत्तर दिया- नहीं कामना, यह मुझसे नहीं हो पायेगा और यह ठीक भी नहीं है। एक ससुर और बहु के बीच में जो पर्दा, मर्यादा और दूरी होती है तुम उसे तोड़ने के लिए कह रही हो।
मैंने तुरंत बोला- पापाजी हमारे पास और कोई चारा भी तो नहीं है। मेरे लिए तो आप मेरी सास और ससुर दोनों ही हो इसलिए क्यों नहीं आप मेरा यह काम मेरी सास की तरह फर्ज़ समझ कर निभा दीजिये।
मेरी बात सुन कर ससुरजी पहले तो चुप हो कर खड़े रहे और फिर अपना सिर को नकारात्मक हिलाते हुए मेरे कमरे बाहर चले गए।
पन्द्रह मिनट तक मैं अपने बिस्तर पर चिंतित पड़ी यही सोच रही थी कि अब आगे क्या करूँ तभी ससुरजी कमरे में लौट कर आये और बोले- कामना, मैं तुम्हे मैले में नहीं पड़ा रहने दे सकता, इसलिए तुम्हारी सफाई करने को तैयार हूँ। लेकिन मुझे नहीं मालूम की वह कैसे करते हैं इसलिए तुम्हें मुझे बताना होगा कि मैं क्या और कैसे करूँ…
ससुरजी की बात सुन मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी हुई क्योंकि जीवन में पहली बार मेरी मम्मी, पापा और पति के इलावा कोई अन्य इंसान मेरे गुप्तांगों को देखेगा या फिर छुएगा।
लेकिन मैंने अपने मन को संयम में रखते हुए उन्हें मुझे बाथरूम में ले जाने में मदद करने के लिए कहा।
तब उन्होंने मुझे सहारा देकर उठाया और कमर से पकड़ कर बाथरूम ले गए तथा मेरे कहने पर मुझे पॉट पर बिठा दिया।
पॉट पर बैठने के बाद मैंने उन्हें कहा- अब आप मेरी नाइटी उतरवा कर कमरे में लकड़ी की अलमारी में से मेरी एक पैंटी, एक नाइटी तथा ड्रेसिंग टेबल के दराज़ में से सेनेटरी नैपकिन का पैकेट लेते आइये।
मेरे कहे अनुसार उन्होंने मेरी नाइटी को नीचे से पकड़ ऊपर की ओर खींच कर मेरे शरीर से अलग करके धोने वाले कपड़ों में रख कर बाथरूम से बाहर चले गए।
थोड़ी देर में ससुरजी मेरे बिस्तर की चादर बदल कर और मेरी पैंटी, नाइटी और नैपकिन लेकर बाथरूम में आये तब तक मैंने जोर लगा कर अपनी योनि में से खून का सारा रिसाव बाहर निकाल दिया था।
ससुरजी के पूछने पर कि आगे क्या करना है तब मैंने उन्हें मेरी योनि को धोने के लिए कहा।
मेरी बात सुन कर पहले तो वे थोड़ा झिझके लेकिन फिर एक मग में पानी ले कर आये और मेरी टाँगे चौड़ी करके मेरी योनि पर पानी डाल कर धोने लगे।
तब मैंने उनसे कहा- पापाजी, ऐसे पानी डालने से सफाई नहीं होगी। आप अपने हाथ में पानी ले कर मेरी योनि को मल मल कर धोयेंगे तभी खून साफ़ होगा।
मेरी बात को समझ कर उन्होंने मेरी योनि पर अपने हाथ से पानी का छींटा मार कर उसे हाथ से ही मल कर साफ़ करने लगे।
उनका हाथ लगते ही मेरा पूरा शरीर रोमांचित हो उठा और मेरे शरीर के रोयें खड़े होने लगे!
लगभग चार सप्ताह के बाद मेरी योनि पर किसी मर्द का हाथ लगने से उसके अन्दर एक खलबली मच गई और मेरी सोई हुई कामवासना उत्तेजित हो उठी।
इतने में ससुरजी ने मेरी योनि पर पानी के पांच-छह छींटे मार कर उसे मल मल कर साफ़ कर दिया और पूछा- कामना, लो अब यह तो बिलकुल साफ़ हो गई है! अब और क्या करना है।
तब मैंने उन्हें कह दिया- पापाजी, अभी इसके अन्दर खून भरा हुआ है। आप दो तीन बार अपनी बड़ी उंगली की इसके अंदर डाल कर थोड़ा घुमा दीजिये तो वह खून बाहर आ जायेगा, उसके बाद आप इसे बाहर से एक बार फिर धो दीजियेगा।
मेरी बात सुन कर उन्होंने जैसा मैंने कहा था वैसे ही अपनी बड़ी उंगली को कई बार मेरी योनि के अंदर घुमाया और जब उनकी उंगली पर खून लगना बंद हो गया तभी वह रुके।
क्योंकि मैं तो पहले से ही उत्तेजित थी इसलिए ससुरजी द्वारा आठ-दस बार योनि के अन्दर उंगली घुमाने के कारण खून के साथ मेरा योनि रस भी छूट कर बाहर निकल आया था जिसे उन्होंने पानी से धो कर साफ़ कर दिया।
इसके बाद मैं पॉट से उठी और अपनी टाँगे चौड़ी करके खड़े होते हुए ससुर जी से कहा- पापाजी, उस पैकेट में से एक सेनेटरी नैपकिन निकाल कर मेरी पैंटी के अन्दर चिपका दीजिये और फिर वह पैंटी और नाइटी मुझे पहना दीजिये।
ससुरजी ने मेरे कहे अनुसार वह सब करके मुझे पैंटी पहनाने के बाद मुझे नाइटी पहनाई और फिर मुझे कमर से पकड़ कर सहारा देते हुए कमरे में लाकर मुझे बिस्तर पर लिटा दिया।
कहानी जारी रहेगी।
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