मेरी लेस्बीयन लीला-3
Part of a series:
मैंने भी उसके कान को चूमते हुए जैसे नींद में ही बोला हो.. धीरे से कहा- लव यू दी..
वे मुस्कुरा दी और अपने गाल से मेरे गाल को सहलाने लगीं.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
दी ने धीरे से मेरे गालों को चूमा और वो फिर बार-बार चूमने लगीं। मैं भी उस दौरान उनकी पीठ सहलाने लगी।
तभी.. मुझे अँधेरे में दीदी की गर्म साँसें मेरे नाक के पास महसूस हुईं.. उनकी साँसें मुझे बेचैन कर रही थीं। मेरा जी तो कर रहा था.. कि आगे बढ़ कर उनके लबों को चूम लूँ.. पर मैं बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभाल पा रही थी, मैं किसी भी बात में पहल करना नहीं चाहती थी।
दीदी मेरी पीठ को एक तरफ से सहला रही थीं.. मेरा पूरा स्तन कड़ा हो चुका था।
नहीं चाहते हुए भी मेरा हाथ दीदी के मम्मे पर चला गया और मेरी सारी भावना मेरे हाथों के जरिए उमड़ पड़ी।
मैंने जोर से उनके उरोज को दबा दिया। उसी समय साथ में ही मैंने अपना मुँह भी खोल दिया.. साथ में होंठ भी गीले कर लिए।
दीदी कराह पड़ी.. एक ‘आह्ह’ भरी और वो भी शायद ऐसे ही किसी पल का इंतजार कर रही थीं।
हम दोनों की गरम साँसें एक-दूसरे को महसूस हो रही थीं।
दीदी ने मुँह आगे बढ़ाया, मैंने भी अपने होंठ खोले.. उन्होंने थोड़ा मुँह टेढ़ा करके मेरे लबों पर अपने तप्त होंठ रख दिए।
हम दोनों तपतपा रहे थे, दोनों के होंठ गीले थे।
पहले तो दी ने मेरे होंठों पर होंठ रख कर अपने होंठ बंद करने लगीं.. तीन-चार बार ऐसा करने के बाद मैंने मुँह थोड़ा और खोला.. तो वो मेरे होंठों को चूसने लगीं।
मैं तो मानो स्वर्ग में थी.. बहुत मजा आ रहा था। हम दोनों के शरीर बहुत ही तप रहे थे.. मानो बुखार हो। इससे मुझे यह भी पता चला कि दीदी का भी शायद ये पहला मौका ही था।
तभी एक लंबा चुम्बन करके उन्होंने मेरे मुँह में अपनी जुबान डाली.. मुझे बहुत ही अच्छा लगा.. उसने निकाली तो मैंने भी वैसे ही किया, तब वो मेरी जीभ को बड़े मजे से चूसने लगीं।
हम दोनों एक-दूसरे का बदन सहला रहे थे।
तभी दीदी ने मुझसे कहा- छोटी.. ये हम क्या कर रहे हैं..
वो परे हो गई और मैं डर गई।
मुझे भी लगा कि अब बात करनी ही पड़ेगी।
वो बैठ गई.. तो मैं उठ कर पानी पीने चली गई।
मैं दीदी के लिए जब पानी लेकर आई तो दीदी जब तक ने लाइट जला दी थी और उनके मुँह पर बारह बजे थे। वैसे तो अब मैं भी डरी हुई थी।
तभी दीदी ही बोली- मेघा, प्लीज़ तू किसी को ये बात मत बोलना.. अन्जाने में गलती हो गई।
मैंने दीदी को पानी पिलाया और दोनों बाँहों से उनको जकड़ कर उनकी गोदी में लेट गई.. मैंने कहा- दी.. कुछ नहीं हुआ है और मुझे ये पसंद भी आया.. आप कुछ गलत मत सोचो।
तब दीदी बोली- मैं अभी इस चक्कर में पड़ना नहीं चाहती थी.. मुझे पढ़ाई में ध्यान देना है.. इसी लिए मैंने किसी लड़के को आज तक घास नहीं डाली। मुझे मालूम है कि इसके लिए बहुत वक्त देना पड़ता है.. पहले प्यार करो.. फिर उसके लिए वक्त निकालो.. पूरी जिन्दगी डिस्टर्ब हो जाती है और पढ़ाई में तो फिर मन ही नहीं लगता..
मैंने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया- हाँ सही बात है.. ऊपर से परिवार की बदनामी का डर.. पापा का भरोसा.. जो छूट मिलती है.. वो भी छिन जाए.. पर दीदी.. कभी-कभी बहुत मन होता है। मुझे भी इस चक्कर में नहीं पड़ना.. पर..
मैंने जानबूझ कर बात आधी छोड़ दी।
दीदी कुछ सोच रही थीं.. उनका मुँह कठोर हो रहा था.. जो मेरे इरादों के लिए सही नहीं था।
मैंने भोली सी सूरत बनाते हुए पूछा- दीदी हम जो अभी कर रहे थे.. क्या वो गलत है? इससे तो कोई फरक नहीं पड़ेगा.. ये तो सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहेगा।
दीदी को भी जैसे कोई जवाब मिला हो.. वैसे वो रिलेक्स हो गईं.. उनके चेहरे के भाव देख कर लगा कि वे नार्मल हो गईं।
मेरी बात सुनकर.. उनके मुँह पर एक छोटी सी ‘नॉटी’ वाली हँसी आ गई और उन्होंने कहा- पर मेरी नन्हीं परी.. फिर मेरे बारे में गलत सोचेगी तो?
मैंने भी मुँह बना कर इतरा कर जवाब दिया- जब परी बहुत खुश होगी.. तो गलत क्यों सोचेगी..? आप मेरी प्यारी.. सबसे अच्छी वाली दीदी हो.. मैं आप की तरह बनना चाहती हूँ और मैं आप से बहुत प्यार करती हूँ।
दीदी जोर से मुस्कुरा दीं.. मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और वात्सल्य से नहला दिया।
फिर नटखट की तरह बोलीं- अब सो जाओ.. रात के तीन बजे हैं..
मैंने कहा- आप बोलेगी.. तो जरूर सो जाऊँगी।
फिर मुँह बना कर कहा- तो सो जाऊँ.. बाद में आप उठाने मत आना.. क्योंकि लोहा गरम करो.. तो उसे पीटना भी चाहिए! खाली गरम करने का क्या फायदा..??
दीदी जोर से मेरी और लपकीं और बोलीं- शैतान.. खड़ी रह.. अभी पीटती हूँ..
मैं खिलखिला कर भाग खड़ी हुई.. भाग कर सोफे पर लेट गई।
दीदी मेरे पास आकर सोफे के नीचे बैठ कर मुझे गुदगुदी करके छेड़ने लगीं।
बोली- बोल कहाँ पीटूं.. बोल.. बोल कैसे पीटूं?
‘जैसे आपको और मुझे दोनों को अच्छा लगे..’ मैंने कहा।
वो मेरी ओर प्यार से देखने लगीं और बोलीं- छोटी.. हम दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करेंगे। कभी कोई कमी महसूस नहीं होने देंगे। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। मैं बड़ी हूँ.. तो पहले में तुझे सब सिखाऊँगी.. तू पूरा मजा लेना।
उसने जाकर लाइट बंद कर दी और लाल वाला नाइट बल्ब जलाया.. एसी और ठंडा किया.. फिर वे मेरे पास आकर बैठ गईं, मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर सहलाने लगीं। मैं आँखें बंद करके सब महसूस कर रही थी.. मानो मैं जन्नत में होऊँ।
ठण्ड बढ़ रही थी.. माहौल बना हुआ था.. मैं सोफे पर लेटी हुई थी और दीदी नीचे कालीन पर बैठी थीं। मेरी उंगली को उसने अपने मुँह में डाला और बड़े प्यार से उसे चूसने लगीं। मुझे कुछ-कुछ होने लगा।
मैं मुँह में उंगली के इर्द-गिर्द अपनी जीभ फिराने लगी, सब गीला हो रहा था।
तभी वो हथेली को काटने लगी.. मैं बहुत ही कामातुर हो गई थी।
मेरी सिसकियाँ निकल रही थीं.. मैं कराह रही थी.. मुझसे सहा नहीं जाता था इसलिए मैंने अपना हाथ मेरी चूत पर रखना चाहा.. तो उन्होंने पकड़ लिया।
अब मेरे दोनों हाथ उसकी गिरफ्त में थे.. वो मजबूती से पकड़े हुए थी।
मुझे अपने करीब खींच कर.. मेरी टी-शर्ट में पीछे से हाथ डाल दिया और दूसरे हाथ से मेरे बाल पकड़ लिए।
मेरा सर पीछे की ओर हो गया। दीदी ने पहले मेरे सर को बड़े प्यार से चूमा। फिर मेरी दोनों आँखों को बारी-बारी से चूमा… फिर वे मेरे गालों को चूमने लगीं।
उन्होंने मेरे कान को चूमा और मेरे कान में अपनी जीभ डाली.. उससे मुझे अजीब सी झुनझुनाहट हुई… मैं तिलमिला गई।
वो धीरे से कान में फुसफुसाई- छोटी.. मेरी जान.. आज का दिन तू कभी नहीं भूल पाएगी।
मैं उत्साहित हो कर आधी खड़ी हो गई। उसने कस कर मेरे होंठों को चूम लिया.. अब दोनों जोश में थे। मुझ पर तो मानो मस्ती सर चढ़ी थी और दीदी भी अजीबोगऱीब तरीके से मुझ पर प्यार लुटा रही थीं।
दीदी को इतना जोश में मैंने कभी नहीं देखा था। मैं भी खुल रही थी.. आधे लेटे-लेटे मैंने मेरा एक पाँव नीचे किया और दीदी के दोनों पैरों के बीच में अपने पैरों की उंगलियों से घात देने लगी।
वो दीदी को भी अच्छा लग, उन्होंने मुझे उकसाया और मेरा पाँव पकड़ कर वो अपनी ‘उस’ जगह पर रगड़वाने लगीं।
मेरे प्रिय साथियों.. मेरी इस कहानीनुमा आत्मकथा पर आप सभी अपने विचारों को अवश्य लिखिएगा.. पर पुरुष साथियों से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि वे अपने कमेंट्स सभ्य भाषा में ही दें।
मेरी लेस्बीयन लीला की कहानी जारी है।
meghajoshi2193@gmail.com
Meri Lesbian Lila-3
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