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पार्क में मुलाकात हुई और कमरे में चुदाई Park me mulakat huyi aur kamre me chudai
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मेरी शादी हुए दो साल हो चुके हैं, शादी के बाद मैंने अपनी चुदाई की इच्छा पूरी की। सभी तरीके से चुदाया... जी हाँ... मेरे पिछाड़ी की भी बहुत पिटाई हुई। मेरी अगाड़ी को भी चोद-चोद कर जैसे कोई गेट बना दिया हो। मेरा पति मुझे बहुत प्यार करता था। वो मेरी हर एक अदा पर न्यौछावर रहता था। अभी वो किसी काम से एक महिना के लिए गया हुआ था। मैं कुछ दिन तक तो ठीक-ठाक रही, पर फिर मुझ पर मेरी वासनाएँ हावी होने लगी। मैं वैसे तो पतिव्रता हूँ पर चुदाई के मामले में नहीं... उस पर मेरा जोर नहीं चलता ! अब शादी का मतलब तो यह नहीं है ना कि किसी से बंध कर रह जाओ? या बस पति ही अब चोदेगा। क्यूँ जी? हमारी अपनी तो जैसे कोई इच्छा ही नहीं है? शादी का एक और मतलब होता है... चुदाई का लाईसेंस !! अब ना तो कन्डोम की आवश्यकता, ना प्रेगनेन्सी का डर... बस पिल्स का सेवन करिये और अपने को नियोजित रखिये। जी हाँ, अब मौका मिलते ही दोस्तों से भी अपनी टांगें उठवा कर खूब लण्ड खाइये और खुशनुमा माहौल में रहिये।
इसे धोखा देना नहीं कहते बल्कि आनन्द लेना कहते हैं। ये खुशनुमा पल जब हम अकेले होते हैं, तन्हा होते हैं... तो हमें गुदगुदाते हैं... चुदाई के मस्त पलों को याद करके फिर से चूत में पानी उतर आता है...। फिर पति तो पति होता है वो तो हमें अपनी जान से भी अधिक प्यारा होता है। "अरे नेहा जी... गुड मॉर्निंग...!" मेरे पीछे से विजय जोगिंग करता हुआ आया। मेरी तो जैसे निंद्रा टूटी हो। "हाय... कैसे हो विजय?" मैंने भी जोगिंग करते हुये उसे हाथ हिलाया। "आप कहें... कैसी हैं ? थक गई हो तो चलो... वहाँ बैठें?" सामने नर्म हरी घास थी। मैंने विजय को देखा, काली बनियान और चुस्त स्पोर्ट पजामे में वो बहुत स्मार्ट लग रहा था। मेरे समय में विजय कॉलेज में हॉकी का एक अच्छा खिलाड़ी था। अभी भी उसका शरीर कसा हुआ और गठीला था। बाजुओं और जांघों की मछलियाँ उभरी हुई थी। चिकना बदन... खुश मिज़ाज, हमेशा मुस्कराते रहना उसकी विशेषता थी और अब भी है। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है।
हम हरी नर्म घास पर बैठे हुये थे... विजय ने योगासन करना शुरू कर दिया। मैं बैठी-बैठी उसे ही निहार रही थी। तरह तरह के आसन वो कर रहा था। उसकी मांसपेशियाँ एक एक करके उभर कर उसकी शक्ति का अहसास करा रही थी। अचानक ही मैं उसके लण्ड के बारे में सोचने लगी। कैसा होगा भला ? मोटा, लम्बा तगडा... मोटा फ़ूला हुआ लाल सुपाड़ा। मैं मुस्करा उठी। सुपर जवान, मस्त शरीर का मालिक, खूबसूरत, कुंवारा लडका... यानी मुझे मुफ़्त में ही माल मिल गया... और मैं... जाने किस किस के सपने देख रही थी, जाने किन लड़कों के बारे में सोच रही थी... इसे पटाना तो मेरे बायें हाथ का खेल था... कॉलेज के समय में वो मेरा दोस्त भी था और आशिक भी ... लाईन मारा करता था मुझ पर ! पर उसकी कभी हिम्मत नहीं हुई थी मुझे प्रोपोज करने की। कॉलेज की गिनी-चुनी सुन्दर लड़कियों में से मैं भी एक थी। बस मैंने ठान ली, बच के जाने नहीं दूंगी इसे ! पर कैसे ? उसके योगासन पूरा करते ही मैंने उस पर बिजली गिरा दी... मेरे टाईट्स और कसी हुई बनियान में अपने बदन के उभारों के जलवे उसके सामने बिखेर दिये।
वो मेरे चूतड़ों का आकार देखता ही रह ही गया। मैंने अनजान बनते हुये उसकी ओर एक बार फिर से अपने गोल-गोल नर्म चूतड़ों को उसके चेहरे के सामने फिर से घुमा दिया। बस इतने में ही उसका पजामा सामने से तम्बू बन गया और उसके लण्ड का उभार स्पष्ट नजर आने लगा। इतना जादू तो मुझे आता ही था। नेहा जी, सवेरे आप कितनी बजे जोगिंग के लिये आती हैं?" आह्ह्ह्... तीर निशाने पर लगा। उसकी नजर तो मेरी उन्नत छातियों पर थी। मुझे अब अफ़सोस हो रहा था कि मैंने लो-कट बनियान क्यों नहीं पहना। पर फिलहाल तो मेरे चूतड़ों ने अपना कमाल दिखा ही दिया था। "तुम तो वहाँ कोने वाले मकान में रहते हो ना...? मैं सवेरे वहीं आ जाऊँगी, फिर साथ ही जोगिंग करेंगे।" मैंने अपनी तिरछी नजर से एक तीर और मारा... वो विचलित हो उठा। हम दोनों अब जूस पी रहे थे। हमारी आँखें एक खामोश इशारा कर रही थी। दिल को दिल से राह होती है, शायद हमारी नजरों ने कुछ भांप लिया था। मैंने अपनी स्कूटी उठाई और घर आ गई।
हमारा अब यह रोज का कार्यक्रम हो गया। कुछ ही दिनों में हम घुलमिल गये थे। मेरे सेक्सी जलवे हमेशा ही नये होते थे। उसका तो यह हाल हो गया था कि शायद मुझसे मिले बिना अब चैन ही नहीं आता था। उसका लण्ड मेरे कसे हुये चूतड़ों और चिकनी चूचियों को देख कर फ़डफ़डा कर रह जाता था... बेचारा... ! उसे पागल करने में मैंने कोई गलती नहीं की थी। आज भी लो-कट टाईट बनियान और ऊंचा सा स्कर्ट पहन कर ऊपर से शॉल डाल लिया। सवेरे छः बजे मैं उसके घर पहुँच गई। उसका कमरा हमेशा की तरह खुला हुआ था। वो अभी तक सो रहा था। सोते हुये वो बहुत ही मासूम लग लग रहा था। उसका गोरा बलिष्ठ शरीर किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता था। मैंने अपना शॉल एक तरफ़ डाल दिया। मेरे स्तन जैसे बाहर उबले से पड़ रहे थे। मुझे स्वयं ही लज्जा आ गई। वो मुझे देख बिस्तर छोड़ देता था और फ़्रेश होने चला जाता था। आज भी वो मेरे वक्ष को घूरता हुआ उठा और बाथरूम की ओर चला गया। पर उसके कड़कते लण्ड का उभार मुझसे छिपा नहीं रहा। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है।
'नेहा, एक बात कहना चाहता हूँ !" उसने जैसे ही कहा मेरा दिल धड़क उठा। उसके हाव भाव से लग रहा था कि वो मुझे प्रोपोज करने वाला है... और वैसा ही हुआ। "कहो... क्या बात है...?" मैंने जैसे दिल की जान ली थी, नजरें अपने आप झुक गई थी। "आप बहुत अच्छी हैं... मेरा मतलब है आप मुझे अच्छी लगती हैं।" उसने झिझकते हुये मुझे अपने दिल की बात कह दी। "अरे तो इसमें कौन सी नई बात है... अच्छे तो मुझे आप भी लगते हैं... " मैंने उसे मासूमियत से कहा... मेरा दिल धड़क उठा। "नहीं मेरा मतलब है कि मैं आपको चाहने लगा हूँ।" इतना कहने पर उसके चेहरे पर पसीना छलक उठा और मेरा दिल धाड़-धाड़ करने लगा। यानि वो पल आ गया था जिसका मुझे बेसब्री से इन्तज़ार था। मैंने शर्माने का नाटक किया, बल्कि शरमा ही गई थी।
"क्या कहते हो विजय, मैं तो शादी-शुदा हूँ... !" मैंने अपनी भारी पलकें ऊपर उठाई और उसे समझाया। दिल में प्यास सी जग गई थी।
"तो क्या हुआ ? मुझे तो बस आपका प्यार चाहिये... बस दो पल का प्यार... " उसने हकलाते हुये कहा।
"पर मैं तो पराई...?... विजय !" मैंने नीचे देखते हुये कहा।
उसने मेरी बांह पकड ली, उसका जिस्म कांप रहा था। मैं भी सिमटने लगी थी। पर मेरे भारी स्तन को देख कर उसके तन में वासना उठने लगी। उसने अपनी बांह मेरी कमर में कस ली। "नेहा, पाप-पुण्य छोड़ो... सच तो यह है... जिस्म प्यार चाहता है... आपका जिस्म तो बस... आग है ... मुझे जल जाने दो !" "छोड़ो ना मुझे, कोई देख लेगा... हाय मैं मर जाऊंगी।" मैंने अपने आपको छुड़ाने की असफ़ल कोशिश की। वास्तव में तो मेरा दिल खुशी के मारे खिल उठा था। मेरे स्तन कड़े होने लगे थे। अन्दर ही अन्दर मुझमें उत्तेजना भरने लगी। उसने मेरी चूचियों को भरपूर नजरों से देखा। "बहुत लाजवाब हैं... !" मैं जल्दी से शॉल खींच कर अपनी चूचियाँ छिपाने लगी और शरमा गई। मैं तो जैसे शर्म के मारे जमीन में गड़ी जा रही थी, पर मेरा मन... उसके तन को भोगना भी चाह रहा था। "हटा दो नेहा... यहाँ कौन है जो देखेगा... !" मेरा शॉल उसने एक तरफ़ रख दिया।
मेरे अर्धनग्न स्तन बाहर छलक पड़े। "चुप ! हाय राम... मैं तो लाज से मरी जा रही हूँ और अ... अ... आप हैं कि... ... " मेरी जैसे उसे स्वीकृति मिल गई थी।
"आप और हम बस चुपके से प्यार कर लेंगे और किसी को पता भी ना चलेगा... आपका सुन्दर तन मुझे मिल जायेगा।" उसकी सांसें चढ़ी हुई थी। मैं बस सर झुका कर मुस्करा भर दी। अरे... रे... रे... मैंने उसे धक्का दे कर दूर कर दिया,"देखो, दूर रहो, मेरा मन डोल जायेगा... फिर मत मुझे दोष देना !" विजय मेरे तन को भोगना चाह रहा था। "हाय विजय तुम क्या चाहते हो... क्या तुम्हें मेरा चिकना बदन ... " मैं जैसे शरमा कर जमीन कुरेदने लग गई। उसने मुझे अपनी बाहों में लेकर चूम लिया। "तुम क्या जानो कि तुम क्या हो... तुम्हारा एक एक अंग जैसे शहद से भरा हुआ ... उफ़्फ़्फ़्फ़... बस एक बार मजे लेने दो !" "विजय... देखो मेरी इज्जत अब तुम्हारे हाथ में है... देखो बदनाम ना हो जाऊँ !" मेरी प्रार्थना सुन कर जैसे वो झूम उठा। "नेहा... जान दे दूंगा पर तुम्हें बदनाम नहीं होने दूंगा... " उसने मेरा स्कर्ट उतारने की कोशिश करने लगा। मैंने स्वयं अपनी स्कर्ट धीरे से उतार दी और वहीं रख दी। वो मुझे ऊपर से नीचे तक आंखें फ़ाड फ़ाड कर देख रहा था।
उसे जैसे यह सब सपना लग रहा था। वो वासना के नशे में बेशर्मी का व्यवहार करने लगा था। मेरी लाल चड्डी के अन्दर तक उसकी नजरें घुसी जा रही थी। मेरी चूत का पानी रिसने लगा था। मुझे तीव्र उत्तेजना होने लगी थी। उसका लण्ड मेरे सामने फ़डकने लगा था। मैंने शरमाते हुये एक अंगुली से अपनी चड्डी की प्लास्टिक नीचे खींच दी। मेरी चूत की झलक पाकर उसका लण्ड खुशी के मारे उछलने लगा था। उसने मेरी बाहें पकड़ कर अपने से सटा लिया। मैंने उसका लण्ड अपने हाथों से सहला दिया। हमारे चेहरे निकट आने लगे और फिर से चुम्बनों का आदान-प्रदान होने लगा। मैंने उसका लण्ड थाम लिया और उसकी चमड़ी ऊपर-नीचे करने लगी। उसने भी मेरी चूत दबा कर अपनी एक अंगुली उसमें समा दी। उत्तेजना का यह आलम था कि उसका वीर्य निकल पड़ा और साथ ही साथ अति उत्तेजना में मेरी चूत ने भी अपना पानी छोड़ दिया।
"यह क्या हो गया नेहा... " उसका वीर्य मेरे हाथों में निकला देख कर शरमा गया वो।
"छीः... मेरा भी हो गया... " दोनो ने एक दूसरे को देखा और मैं शरम के मारे जैसे जमीन में गड़ गई।
"ये तो नेहा, हम दोनों की बेकरारी थी... " हम दोनों बाथरूम से बाहर आ गये थे। मैंने अपने कपड़े समेटे और शॉल फिर से ओढ़ लिया।
मेरा सिर शर्म से झुका हुआ था। उसने तौलिया लपेटा और अन्दर से दो गिलास में दूध ले आया। मैंने दूध पिया और चल पडी... "कल आऊँगी... अब चलती हूँ !"
"मत जाओ प्लीज... थोड़ा रुक जाओ ना !" वह जैसे लपकता हुआ मेरे पास आ गया।
"मत रोको विजय... अगर कुछ हो गया तो... ?"
"होने दो आज... तुम्हें मेरी और मुझे तुम्हारी जरूरत है... प्लीज?" उसने मुझे बाहों में भरते हुये कहा।
मैं एक बार फिर पिघल उठी... उसकी बाहों में झूल गई। मेरे स्तन उसके हाथों में मचल उठे। उसका तौलिया खुल कर गिर गया। मेरा शॉल भी जाने कहाँ ढलक गया था। मेरी बनियान के अन्दर उसका हाथ घुस चुका था। स्कर्ट खुल चुका था। मेरी बनियान ऊपर खिंच कर निकल चुकी थी। बस एक लाल चड्डी ही रह गई थी।
मैं उससे छिटक के दूर हो गई और... अपनी लाल चड्डी भी उतार दी। विजय तो पहले ही नंगा था, उसका लण्ड तन्ना रहा था, चोदने को बेताब था... मैं हिम्मत करके उसके लण्ड का स्वाद लेने के लिये बैठ गई और उसे पास बुला लिया। उसका सुन्दर सा लण्ड का सुपारा बड़ा ही मनमोहक था। पहले तो शरम के मारे मेरी हिम्मत नहीं हुई, फिर मैंने उसे सहलाते हुये अपने मुख में ले लिया।
"नेहा.. छीः यह गन्दा है मत करो !"
"विजय, कुछ मत कहो ... तुम क्या जानो, मेरा पानी निकालने वाला तो यही है ना... प्यार कर रही हूँ !"
वो छटपटाता रहा और मैं उसके लण्ड को मसल मसल कर चूसती रही। उसका मोटा लम्बा लण्ड मुझे बहुत भाया। "नेहा... आओ बिस्तर पर चलें, वहीं प्यार करेंगे... " लगता था कि उससे अब और नहीं सहा जा रहा था।
हम दोनों अब बिस्तर में थे, एक दूसरे के शरीर को सहला रहे थे, अधरपान कर रहे थे। वो मेरी चूचियाँ और चुचूक मसल रहा था। मैं उसका लण्ड हाथ में लेकर सहला रही थी और हौले हौले मुठ मार रही थी। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरी चूत गरम हो चुकी थी। चूत बेचारी मुँह फ़ाडे लण्ड का इन्तज़ार कर रही थी। जीवन में नंगे होकर इस प्रकार मस्ती मैं पहली बार कर रही थी। मैंने नंगापन छिपाने के लिये पास पड़ी चादर दोनों के ऊपर डाल ली। कुछ ही देर में विजय का लण्ड मेरी गीली और चिकनी चूत में दबाव डाल रहा था। उसके सुपारे की मोटाई अधिक होने से पहले तो चूत के द्वार में ही अटक गया। मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। दोनों जिस्मो का संयुक्त जोर लगा तो लण्ड फ़ंसता हुआ घुस गया।
मैंने कहा - हाय इतना मोटा...
फिर तो विजय का बलिष्ठ शरीर मेरे पर जोर डालता ही गया। मेरी चूत की दीवारें जैसे लण्ड को रगड़ते हुये लीलने लगी। अभी अभी तो लण्ड घुसा ही था ... पर मेरी धड़कन तेज हो उठी। अचानक उसने अपना लंड बाहर खींच कर फिर से अन्दर तक उतार दिया। मैंने आनन्द के मारे विजय को जकड़ लिया। चुदी तो मैं खूब थी... पर ऐसे कड़क लण्ड की चुदाई पहली बार ही महसूस की थी। धीरे धीरे चुदाई रफ़्तार पकड़ने लगी। ऐसा मधुर अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था। मैंने अपने हाथ और अपनी टांगें पूरी पसार दी थी। इण्डिया गेट पूरा खुला था। ओढ़ी हुई चादर जाने कहां खो गई थी। मेरी चूचियों की शामत आई हुई थी। विजत उन्हें दबा कर मसल रहा था, घुण्डियों को खींच-खींच कर मुझे उत्तेजना की सीढ़ियों पर चढ़ा दिया था। मैं नीचे दबी बुरी तरह चुद रही थी। विजय का बलिष्ठ शरीर मुझे चोदने में अपने पूरे योगाभ्यास के करतब काम में ले रहा था। दोनों ही जवानी की तरावट में तैर रहे थे। उसके लण्ड की साथ साथ मेरी चूत भी ठुमके लगा रही थी। अचानक मेरे अंग कठोर होने लगे...
मैंने विजय को अपनी ओर भींच लिया। "विजय... आह्ह्ह्ह विजय... " मेरा तन जैसे टूटने को था, लगा कि मेरा पानी अब निकल पड़ेगा।
"मेरी नेहाऽऽऽऽऽऽऽ... ... मैं भी गया... " उसका लण्ड जैसे भीतर फ़ूल उठा।
"मेरे राजा... ये आह्ह्ह ... हाय बस कर... विजय... "
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मेरी चूत पहले तो कस गई, फिर एक तेज मीठी सी उत्तेजना के साथ मेरा पानी छूट पडा। मेरी चूत में मीठी-मीठी लहरें चल पड़ी। मैं झड़ रही थी। उसके मोटे लण्ड ने भी एक फ़ुफ़कार सी भरी और चूत के बाहर आ गया। विजय ने अपने हाथो से लण्ड को बेदर्दी से हाथ से दबा डाला और उसमें से एक मधुर पिचकारी उछाल मारती हुई निकल पड़ी... कई शॉट्स में लण्ड अपना वीर्य मेरे पर निछावर करता रहा। मैंने वीर्य को अपनी चूचियों पर व नाभि पर मल लिया। कुछ ही देर में वीर्य ने मेरे जिस्म पर सूख कर एक पर्त बना ली। यह मेरी चिकनी और नर्म चूचियों के लिये एक फ़ेस पेक की तरह था।
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