दिव्या की महकती चूत को चोदा - Divya Ki Mahakti Choot Ki Chudai

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मेरा नाम विवेक है, लम्बाई 5’10”, रंग गोरा, शरीर स्वस्थ, लंड की लम्बाई उस वक्त 5 इंच, हालाँकि अभी 6.5 इंच है, मोटाई 3 इंच।

घटना आज से लगभग 25 वर्ष पहले की है।

मैं अपने दूर के रिश्ते के चाचा के घर रहकर पढ़ाई करता था। घर में चाचा उम्र 29 साल, चाची उम्र 26 साल, चाची की माँ जिसे हम नानी कहते थे, उम्र 55 साल और चाची की बहन की बेटी रागिनी रहते थे। चाचा प्रखण्ड कार्यालय में काम करते थे और उसी इलाके में अवस्थित डाक-बंगला जो बहुत बड़ा था, के पिछले हिस्से में रहते थे। पिछले हिस्से में तीन बड़े-बड़े कमरे थे। रागिनी देखने में बहुत सुन्दर थी, खूब गोरी, बड़े-बड़े चुचे, बड़ी मस्त लगती थी। लेकिन इसकी चुदाई की कहानी बाद में। अब हम मुख्य कहानी पर आते हैं।

बात उस समय की है जब मैं बारहवीं में पढ़ रहा था, मेरी परीक्षा होने वाली थी, मेरे परीक्षा का सेंटर चाचा के आवास से करीब दस किलोमीटर था। सेंटर के पास ही थाना था जिसके प्रभारी मेरे चाचा के दूर के रिश्ते के ससुर थे। उन्हीं के आवास पर मुझे बारह दिनों तक रहना था। परीक्षा से दो दिन पूर्व मैं उनके यहाँ शिफ्ट हो गया। उसी सेंटर पर उनकी भांजी दिव्या का भी परीक्षा था। वो भी काफी खूबसूरत थी। वहाँ पर पूरा परिवार ग्राउंड फ्लोर पर रहता था और ऊपर छत पर दो कमरा और एक कम्बाइंड बाथरूम था। एक कमरा मुझे और एक कमरा दिव्या को मिला था ताकि हमारी पढ़ाई में कोई बाधा ना हो।

पहला दो दिन तो यूँ ही गुजर गया। हाँ इस दो दिन में मैंने उसे देखकर यह जरुर तय लिया कि इसके साथ चूमा-चाटी तो कर ही लूँगा, चोद सकूँ या नहीं। क्योंकि इससे पहले मैंने किसी को भी चोदा नहीं था।

प्रथम दिन की परीक्षा देकर जब हम लोग लौटे तो रात में एक ही कमरे में बैठकर अपना-अपना प्रश्नपत्र लेकर परीक्षा के सम्बन्ध में बातें करने लगे।

बातचीत के दौरान हम लोगों का हाथ एक-दूसरे के शरीर को छू भी रहा था, सामान्य भाव से। इसी क्रम में अचानक दिव्या ने अपना हाथ मेरे लंड के ऊपर रख दिया, ऐसे जैसे अनजाने में रख दिया हो। मेरे पूरे बदन में जैसे करेंट दौड़ गया लेकिन मैं भी अनजान बना रहा और उसके हाथ को धीरे से हटा दिया।

वो कनखियों से मुझे देखने लगी।

उसे अपनी ओर देखते देखकर मुझे लगा कि शायद उसकी नीयत ठीक नहीं है। लेकिन उस वक्त उसने कुछ और नहीं किया शायद वह भी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। फिर हम लोग थोड़ी देर और बातचीत करके सो गए।

अगले दिन सुबह मैं बाथरूम में नहा रहा था। बाथरूम दोनों कमरों से अटैच था। दुर्भाग्य से या सौभाग्य से उसके कमरे में खुलने वाला दरवाजा लॉक नहीं था। मैं सिर्फ अंडरवियर में ही नहा रहा था। ठंडा पानी पड़ने के कारण मेरा लंड पूरा फनफनाया हुआ था।

अचानक दूसरा दरवाजा खुला और दिव्या अंदर आ गई।

मैंने झपाक से तौलिया कमर में लपेट लिया। पर वो मंद-मंद मुसकुराती हुई बेख़ौफ़ कमोड के पास जाकर अपनी पैंटी नीचे सरकाकर पेशाब करने लगी और बीच-बीच में पलटकर मुझे भी देखने लगी।

अब तो उसकी नीयत स्पष्ट हो गई लेकिन मैं फिर भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था।

जब वो उठकर जाने लगी तो जाते-जाते उसने तौलिए के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़कर मसल दिया और भाग गई।

मैं तो गनगना गया।

फिर मैं भी बाहर चला आया। थोड़ी देर बाद वो नहाने के लिए बाथरूम में आई तो मुझे भी बर्दाश्त नहीं हुआ और मैं अपने साइड के दरवाजे की झिर्री से उसे देखने लगा। उसे भी शायद इस बात का एहसास था कि मैं उसे देख रहा हूँ, इसलिए वो बड़ी बेतकल्लुफी से मेरे दरवाजे की ओर अपने अंगों को उभार कर नहाती रही।

फिर हम लोग परीक्षा देने चले गए, लेकिन चुदाई की भूख शायद हम दोनों के दिमाग में चढ़ चुकी थी।

रात में पुनः जब हम लोग खाना-वाना खाकर ऊपर आए तो मेरा दिल धड़कने लगा। थोड़ी देर के बाद वो मेरे कमरे में आज का प्रश्नपत्र लेकर आ गई। कुछ देर तक हम लोग परीक्षा के बारे में बात करते रहे, पर वह तो सिर्फ भूमिका थी, कमरे में आने की।

हठात उसने मेरा लंड पजामे के ऊपर से ही पकड़ लिया।

मैंने कहा– यह क्या कर रही हो?

तो उसने मुझसे ही सवाल कर दिया– क्या तुम मुझे चोदना नहीं चाहते हो?

मैं तो उसके बेबाक सवाल पर भौंचक्क रह गया, कुछ जवाब सूझा ही नहीं।

तो वो मुझसे लिपटते हुए बोली– देखो ज्यादा सोचो मत, तुम्हारे मन में भी मेरे लिए कुछ ऐसे ही ख्यालात हैं, मैं जानती हूँ, अपना मन मत मारो, जब मैं खुद ही चुदने के लिए तैयार हूँ तो तुम क्यूँ हिचक रहे हो।

उसके हिम्मत और सहयोगात्मक रवैये को देखकर मेरी भी हिम्मत बढ़ी और मैंने उसे अपनी बाहों में जोर से भींच लिया।

वो कसमसा गई और बोली हम दोनों ही अपने घर में नहीं हैं, इसलिए हर काम सावधानी से करेंगे और जल्दी-जल्दी करेंगे।

मैं खुश हो गया।

उसने अपने रसभरे होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया। उसके गर्म होंठ मेरे गर्म होंठों पर जैसे चिपक गए। काफी देर तक हम लोग चूमा-चाटी करते रहे। पर आगे क्या और कैसे करना है, यह ना तो उसे पता था और ना ही मुझे। हम दोनों ही के लिए यह पहला अवसर था। लेकिन दिव्या में मुझसे कुछ ज्यादा ही हिम्मत थी।

हम लोगों को और कुछ पता हो या ना हो पर इतना तो पता ही था कि बुर में लंड घुसाने को ही चुदाई कहते हैं। अतः मैंने सबसे पहले उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसने मेरे पाजामे का। दोनों के ये वस्त्र उतर गए तो फिर वो मेरा अंडरवियर उतारने लगी और मैंने उसकी चड्डी उतार दी।

अब वो मेरे लंड को हाथों में लेकर सहलाने लगी और मैं आनन्द के सागर में गोते लगाने लगा। यह मेरे जीवन का पहला अनुभव था।

मैं भी आवेश में आकर उसकी बुर को सहलाने लगा। उसकी बुर-प्रदेश पर हल्के भूरे बहुत छोटे-छोटे बाल उग आए थे जो एकदम मखमल की तरह थे। मैं उसकी बुर को सहलाते-सहलाते उसके पट को खोलने लगा। वो सीत्कार कर उठी। मेरा लंड भी इतना कड़ा हो गया कि लगा अब फट जायेगा और दिव्या को भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था।

वो नीचे लेट गई और मेरे लंड को पकड़कर अपने बुर पर रगड़ने लगी। मैं तो पागल हुआ जा रहा था। अब मैं भी अपने लंड का दबाव उसकी योनि पर बढ़ाने लगा। लेकिन बुर में किस छेद में लौड़ा डाला जाता है मुझे पता नहीं था, दूसरी बात उसकी बुर इतनी कसी हुई थी कि मेरा लंड अंदर जा भी नहीं रहा था।

फिर उसने ही कहा- जाकर पहले तेल की शीशी लाओ।

मैं तेल ले आया। उसने अपने हथेली पर तेल उड़ेल कर मेरे लंड पर लगाया और अपनी बुर के मुहाने पर भी थोड़ा सा तेल उड़ेल दिया। जब मैंने देखा कि तेल बुर के अंदर नहीं जाकर बाहर की ओर बह रहा है तो उसने कहा कि उंगली के सहारे तेल को बुर के अंदर डाल दो।

मैंने ऐसा ही किया और तेल डालने के क्रम में मैंने अपनी उंगली उसकी बुर के अंदर घुसाई।

वो चिहुंक गई, फिर तो मुझे लगा कि उसे मजा आ रहा है, और मैं उसकी बुर में उंगली अंदर-बाहर करने लगा।

वो मस्त होने लगी।

जब उसकी बेचैनी बढ़ गई तो मैंने लंड को उसकी बुर के मुंह पर रखा और हल्का सा दबाया तो लंड का सुपारा अंदर घुस गया और वो हल्के से चीख पड़ी।

मैं घबरा कर लंड बाहर निकालने लगा तो उसने मेरे कमर को पकड़कर अपनी ओर खींचा और लंड निकलने नहीं दिया।

मैंने उसके चेहरे की ओर देखा, उसके चेहरे पर दर्द झलक रहा था किन्तु उसने कहा- शुरू में ऐसा ही होता है, मैं बर्दाश्त कर लूँगी, तुम लंड मत निकालो और धीरे-धीरे धक्का दो।

मैं उत्साहित हुआ और फिर एक जोर का धक्का लगाया। और मुझे लगा था कि लगभग 4 इंच लंड अंदर घुस गया।

वो रोने लगी और मुझे लगा जैसे कोई गर्म तरल पदार्थ मेरे जांघों पर बहने लगा। मैं समझ नहीं सका कि वो क्या था। मैं थोड़ी देर रुक गया, पर उसने हिम्मत नहीं हारी।

मैं उसे चूमने लगा। दो मिनट बाद उसने कहा– अब धक्का लगाओ !

तो मैं धक्के लगाने लगा। मगर शायद अति-उत्साह, रोमांच और डर के कारण छह-सात धक्के में ही मेरे लंड से कुछ गर्म तरल पिचकारी की भांति निकलने लगा और मैं निढाल होकर दिव्या के ऊपर ही लेट गया।

दिव्या ने भी मुझे अपनी बाँहों में लपेट लिया और जकड़ने लगी। हम दोनों ही थक गए थे, उसी अवस्था में हम लोग सो गए। मेरा लंड कब सिकुड़ कर बाहर निकला पता भी नहीं चला।

पन्द्रह-बीस मिनट के बाद जैसे होश आया। जब नीचे नजर गई तो मैं घबरा गया, क्यूंकि बिस्तर पर खून ही खून था।

उसने कहा- कोई बात नहीं, पहली बार ऐसे ही होता है।

उसने झट से बेडशीट को बाथरूम में बाल्टी में पानी से धो दिया। मुझे लगा कि वो कुछ ज्यादा ही ज्ञान रखती है।

मैंने पूछा- मन भरा या नहीं?उसने जवाब दिया- मन तो नहीं भरा !

किन्तु थकान की वजह से फिर दुबारा कुछ करने की हिम्मत नहीं हुई। हम लोग लिपटकर सो गए।

रात के करीब दो बजे हम लोगों की नींद खुली, हम लेटे लेटे ही एक-दूसरे के अंगों से खेलने लगे। मैंने पहली बार उसकी चूची को कमीज के ऊपर से ही टटोला। वो बिस्तर पर ही लहराने लगी। तब मुझे लगा कि बुर-लंड के अलावा भी शरीर के कई अंग हैं जिससे मजा लिया जाता है।

हम लोग पुनः लिपटने चिपटने लगे। मैंने उसकी समीज और टेप (लड़कियों की बनियान) उतार दी, उसने भी मेरे टी-शर्ट को निकाल दिया। नीचे से तो हम लोग नंगे थे ही।

अब मैं उसके पूरे शरीर को चूमने और चाटने लगा। उसकी चूचियों को मुँह में लेकर चुभलाने लगा, वो आह… उह… करने लगी।

फिर मैं सरकते हुए नीचे की ओर आया और उसकी बुर को चाटने लगा। दो-चार बार ही चाटा होगा कि दिव्या न जाने किस आवेश में आकर मेरे सर को अपनी बुर पर दबाने लगी। उसकी बुर से ढेर सारा लसलसा पानी निकलने लगा और मेरे होंठ पर लग गया।

शुरू में तो घिन आई किन्तु उसका स्वाद बहुत अच्छा लगा, तो मैंने उस सारे पानी को चाट लिया।

मुझे ऐसा करते देखकर दिव्या ने भी मेरे मुरझाये हुए लंड को पकड़कर मुंह में ले लिया और लंड को मुंह में आगे-पीछे करते हुए चूसने लगी।

मैं तो जैसे स्वर्ग में पहुँच गया। उसके इस क्रिया से मेरा लंड फिर से लोहे जैसा कड़क हो गया और मैं पूरी मस्ती में आ गया। दिव्या भी पूरी तरह गर्म हो चुकी थी।

उसने फुसफुसाते हुए कहा- अब नहीं रहा जाता है, मेरी प्यास बुझा दो, मुझे कसकर चोद दो।

तो मैंने भी तुरंत उसके दोनों टांगों को फैला कर बुर के ऊपर अपने लंड को सेट किया और एक जोरदार धक्का दिया, आधा लंड घुस गया और वो मचलने लगी। मैंने एक बार फिर जोर से धक्का मारा और इस बार मेरा पूरा लंड उसकी बुर के अंतिम छोर पर टकराने लगा।

वो तो निहाल हो गई।

अब उसके मुंह से अस्पष्ट ध्वनि निकलने लगी। वो बार-बार कह रही थी– और जोर से, कस कर, चोद दो, चोद दो !

और ना जाने क्या क्या।

मैं भी अब धीरे-धीरे चोदने लगा, धक्के लगाने लगा। इस बीच एक बार उसकी बुर से गरमागरम रस भी निकल गया और उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव आ गए, उसने कहा- मेरा मन तो भर चुका है, पर जब तक तुम्हारा मन नहीं भरे, तुम चोदते रहो।

चूंकि मेरा एक बार पानी निकल चुका था, इसलिए मेरा लंड देर तक कड़क बना रहा। अब तक मैं तीस-बत्तीस धक्के लगा चुका था और मैं थक भी गया था पर रस निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था।

लेकिन मैं रुका नहीं, धक्के पर धक्का लगता ही रहा। साथ में उसकी चूची भी मसलता रहा।

थोड़ी देर के बाद दिव्या भी फिर से मस्त हो गई और नीचे से चूतड़ उछालने लगी, उचक-उचक कर चुदवाने लगी। करीब अठारह-बीस धक्कों के बाद उसका बदन अकड़ने लगा, उसने कहा- मेरा तो फिर से रस निकलने वाला है।

उसके कहते ही फिर से उसकी बुर में गर्म रस भर गया। अब हर धक्के पर फच-फच की आवाज आने लगी।लेकिन अगले चार-पांच धक्कों के बाद ही मेरी पिचकारी भी छूटने लगी और मैं निढाल हो गया।

फिर तो परीक्षा खत्म होने तक हर रात हम लोग चुदाई का खेल खेलते रहे। हर रात दो बार या तीन बार मैं उसको चोदता।

दोस्तो, यूँ तो अब मेरी उम्र 43 साल है, शादीशुदा हूँ, और अब तक न जाने कितनी बार चुदाई का आनन्द लिया है। मेरी पत्नी भी बहुत सेक्सी है और चुदाई में निपुण और पूर्ण संतुष्टि देने वाली है, पर अब शादी के बाद मैंने पत्नी के अलावा किसी को नहीं चोदा।

मैंने अपना लंड उसकी चूत से सटाया - Maine uski chut par lund rakhkar dhkka mara

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रेशमा भी मेरे प्रयास में साथ दे रही थी, जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत को टच करता, वो तुरन्त ही अपनी कमर को मेरा लंड अन्दर लेने के लिये उठा देती। पर हर बार लंड फिसल कर अलग हो जाता।

अब मेरा सब्र भी खत्म हो रहा था, मैंने अपना लंड उसकी चूत से सटाया और उसकी चूत को अपने हाथों से थोड़ा फैलाया और लंड को उसमें हल्के ताकत के साथ प्रवेश करा दिया। “आआआ आआहह आआअ…” की एक चीख मुझे सुनाई दी लेकिन मैंने उस चीख को अनसुना करते हुए अपने कार्य को जारी रखा और थोड़ा ताकत लगाकर लंड को अन्दर धकेलने का प्रयास कर रहा था.

हालाँकि मुझे भी लग रहा था कि मेरे लंड को कोई चाकू से छील रहा हो, बहुत तेज जलन हो रही थी।

मैं अपनी ताकत लगाता रहा और रेशमा की चीखें निकल रही थी। रेशमा की चीखों को सुन कर सोनी भी डर गयी और वो रेशमा से अलग हो गयी।

मैंने तुरन्त उसके निप्पल को चूसना शुरू कर दिया। रेशमा की आँखों से आँसू निकल रहे थे, उसके नाखून मेरी पीठ पर गड़ रहे थे। मैंने उसके निप्पल को पीने के साथ साथ उसके बहते हुए आँसुओं को भी चखना शुरू किया। धीरे धीरे रेशमा शांत होने लगी।

जब उसकी सिसकियाँ बन्द हुयी तो मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा- बस एक बार और बर्दाश्त कर लो, फिर मजे ही मजे हैं। मेरी तरफ रूँआसी आँखों से देखते हुए बोली- अगर मुझे मालूम होता कि वास्तव में इतना दर्द होता है, तो मैं कभी नहीं आती।

"तुमने तो कहानी पढ़ी होगी कि पहली चुदाई में दर्द तो होता ही है।"

"हाँ पढ़ी तो थी, पर क्या मालूम इतना ज्यादा होता है।"

"चिन्ता मत करो, मजा भी बहुत आयेगा। बस एक बार!"

"ठीक है।" "ऐसे नहीं... मुस्कुरा कर कहो।"

थोड़ा तड़प के साथ वो मुस्कुराती हुई बोली- ठीक है। मैं उसे इसी तरह की बातों में बहकाने की कोशिश कर रहा था।

तभी मुझे लगा कि सोनी मेरी पीठ को चूम चाट रही है। मैं अब धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर कर रहा था। जब रेशमा की चूत थोड़ी और ढीली हुयी तो मैंने इस बार एक तेज झटका दिया।

"आईईई... ईईईई मां मर गयी।"

मैंने उसकी आवाज दबाने की कोशिश नहीं की और एक बार फिर उसके ऊपर लेट कर उसे चूमने चाटने लगा। थोड़ी देर बाद रेशमा की कमर उठने लगी, मैं अब हल्के हल्के धक्के लगाने लगा और रेशमा भी गांड उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी।

अभी रेशमा मुझसे पूरी तरह चुद भी नहीं पायी थी कि फटाक से कमरे का दरवाजा खुला। मेरे चूतड़ पर जोर का एक हाथ पड़ने के साथ मुझे 'मादरचोद' का सम्बोधन सुनने को मिला। सोनी डर के मारे पलंग के दूसरी ओर छुप गयी थी। मैं बिलबिला कर उठा।

मेरे सामने एक निहायत खूबसूरत लेडी परफेक्ट फिगर 36-32-36 के साथ खड़ी थी। सफेद चमकीली साड़ी में वास्तव में बहुत खूबसूरत लग रही थी। मेरी तो नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी। इधर रेशमा को जो कपड़ा मिला, उसने उसको अपने ऊपर डाल लिया।

वो सुन्दर लेडी गुस्से में लाल दिख रही थी। तभी मुझे वो झकझोरते हुए बोली- कुत्ते तू है कौन? और ये दोनों कुतिया कौन हैं? और मेरे घर के अन्दर ये क्या कर रहा है। मेरे घर को रंडीखाना बना रखा है। मैंने अपने को शांत बनाये रखा और बोला- मैं इलाहाबाद से हूं और आलोक का दोस्त हूँ।

"इसका मतलब आलोक को भी पता है कि तुम इन दोनों लड़कियों के साथ चुदाई का खेल खेल रहे हो?"

"नहीं!"

मैंने कहा- ऐसा नहीं है! उससे हमने झूठ बोला था।

"हम्म, मैं आलोक को फोन लगाती हूं और उसे बताती हूँ कि तुम जैसे मादरचोद लोग उसके दोस्त हो, और उसके घर को रंडीखाना बना रखा है।"

"सॉरी मैम, रहने दीजिए, हम लोग अभी तुरन्त निकल जाते हैं।"

इतना कह कर मैंने अपने कपड़े पहनने शुरू किये और लड़कियों को भी कपड़े पहनने का इशारा किया। तभी वो लेडी फिर बोली- रूको... नहीं तो मैं पुलिस बुला लूंगी। कह कर उसने अपने मोबाईल से हमारी तस्वीरें खींच ली। हम तीनों की गांड फट रही थी, हम सभी फिर रूक गये। तभी वो रेशमा, जो बिस्तर पर बैठे हुए कपड़े पहनने की कोशिश कर रही थी, के पास पहुंची और बिस्तर को देखते हुए बोली- ओह कुंवारी हो, चुदने आयी थी, चूत में चुल्ला ज्यादा उठ रहा था ना?

बेचारी रेशमा रूँआसी हो गयी. मुझे बीच में बोलना ही पड़ा- मैम, उसको कुछ मत कहिये, जो कुछ कहना है, मुझे कहिये।

"ओह शरीफ की नाजायज औलाद, बुर चोदने की बड़ी इच्छा होती होगी तेरे को?"

मैं चुपचाप उसकी सभी अनर्गल बाते सुनता रहा। तभी उसकी नजर मेरे लंड पर पड़ी- ओह... लंड भी काफी बड़ा है! कहते हुए मेरे अंडे को कस कर दबा दिया। मैं दर्द को बर्दाश्त करता रहा। कुछ देर बाद वो मेरे अण्डों को छोड़ते हुई बोली- दोस्त को धोखा देते हुए शर्म नहीं आयी? जब काफी देर बाद वो चुप हुयी तो मैं बोला- मैम मुझे दुख है और मैं माफी मांगता हूँ। इतना कहते हुए मैंने दोनों लड़कियो को कपड़ा पहने को कहा और मैं खुद कपड़े पहनने लगा।

तभी एक बार फिर बोली- भोसड़ी के कैसा मर्द है तू? इतनी देर से मैं तुझे गाली दिये जा रही हूं और तू है कि चुपचाप खड़ा है। अभी तक तो तुझे मेरी इतनी बदतमीजी में पकड़ कर चोद देना चाहिए, जबकि मैं इन दोनों लड़कियों से ज्यादा खूबसूरत हूँ।

मैंने सर झुका कर कहा- मैम आप सही कह रही हो, लेकिन मुझे जबरदस्ती की चुदाई पंसद नहीं है। मुझे मजा तब आता है जब सामने वाला राजी खुशी से चुदने को तैयार हो। राजी खुशी से चुदाई का मजा अलग है। जबकि जबरदस्ती की चुदाई में दो पल का मजा तो जरूर होता है पर जिन्दगी भर के लिये नफरत होती है।

"मैं तुम्हारी बातों से काफी प्रभावित हुई हूँ!"

मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली- तुम्हारी इस बात को कोई समझदार लड़की या औरत सुन ले तो कपड़े उतार कर चुदने के लिए तैयर हो जाये। पर मैं तुम लोगों को जाने दे सकती हूं अगर तुम मेरी एक बात मानो तो? मैं समझ तो रहा था कि एक औरत के सामने एक आदमी नंगा खड़ा है और उसे अभी तक कपड़े पहनने के लिये नहीं बोला गया हो तो आप भी समझ सकते हैं कि वो क्या बात मनवायेगी। पर फिर भी मैं बोला- मैम आप जो कहें, मैं करने के लिये तैयार हूँ।

"ठीक है, लेकिन अगर मना किया तो समझ लो जो फोटो खींची है, वो आलोक के साथ-साथ दूसरी जगह पहुंच जायेगी।"

एक तरह से धमकी थी तो मैंने थोड़ा डरने की एक्टिंग करते हुए कहा- नहीं नहीं, आप जो कहोगी, मैं सब करने के लिये तैयार हूँ।

"तुम्हें मेरी झांटें बनानी होगी।"

"क्या?"

मैं आँखे फाड़ के उनकी तरफ देखने लगा- मैएएएएएडम?

"मैडम नहीं, मुझे अलका कहो, वैसे भी पहली बार मेरी झांटें आलोक ने ही बनाई थी और आज तक बनाता चला आ रहा है, बीच-बीच में एक दो और लोगों ने भी बनाई है। आज तुमको मैं मौका दे रही हूँ।"

"पर..."
कह कर मैं रूक गया. वो 'हूं' बोल कर अपनी आँखें तरेरते हुए बोली- क्या कहा? मैं झट से बोला- कुछ नहीं, कुछ नहीं, जो आप कहें!।

"हम्म... तो चलो तैयार हो जाओ।"
मै..., न अलका जी, आप अपनी झांट रेजर से बनवाती हैं या फिर रिमूवर क्रीम से?"

"नहीं, अभी तक मेरी चूत में उस्तरा नहीं चला है। रिमूवर से बनवाती हूँ।"

"ठीक है अलका जी, मैं तैयार हूं आपकी झांट बनाने के लिये।"
अलका ने खुद ही रिमूवर के साथ-साथ कॉटन, पानी सब कुछ लाकर दिया।
"अलका जी, आप अपने कपड़े उतारिये।"
"कैसे मर्द हो भोसड़ी वाले, तुम्हें मेरे कपड़े उतारने में शर्म आ रही है? चल उतार... पता नहीं किस मादरचोद ने तुमको चुदक्कड़ बना दिया है।"

बस मेरा इतना सुनना था कि मैंने अलका का हाथ पकड़ा और झटके से अपनी तरफ खींचा और अलका की कमर को अपने हाथों के बीच कैद कर लिया। दोनों लड़कियाँ टकटकी लगाये देख रही थी। मुझे तो लग रहा है कि कम से कम रेशमा तो अलका को गरिया जरूर रही होगी लेकिन देखने के अलावा कर क्या सकती थी।

मेरे हाथ अलका की गांड को दबाने लगे और जितनी ताकत से अपनी उंगली उसकी साड़ी के ऊपर से उसकी गांड में डाल सकता था, उतनी ताकत में लगा रहा था। इधर अलका भी मेरी गांड में उंगली कर रही थी। थोड़ी देर तक ऐसा ही चलता रहा।

तभी सोनी और रेशमा एक साथ बोली- अरे तुम दोनों एक दूसरे की गांड में उंगली ही करोगे या आगे भी कुछ करोगे? उनकी बात को सुन कर मैंने अलका की साड़ी उसके जिस्म से अलग की, फिर उसके ब्लाउज को उससे अलग किया, फिर पेटीकोट।

उसकी ब्रा और पैन्टी भी सफेद रंग की ही थी। जैसे ही मैंने उसके ब्रा को उसके जिस्म से अलग किये, दूध जैसे उसके कबूतर उछल कर बाहर आ गये और मेरे सीने से चिपक गये। इस बीच अलका मुझसे बिल्कुल अलग नहीं हुयी थी, उसका गर्म जिस्म मुझसे चिपका हुआ था।

उसकी लम्बाई और मेरी लंबाई लगभग एक जैसी थी, इसलिये उसकी छाती और मेरी छाती लगभग आपस में मिली हुयी थी। अब मेरी उंगली उसकी पैन्टी की लास्टिक को पकड़कर नीचे करने लगी, तो उसने मेरी कलाई को पकड़ लिया और धीमी आवाज में बोली- थोड़ी देर रूको, तुम मुझे इसी तरह चिपकाये रहो, मुझे तुम्हारे सीने की गर्मी को महसूस करना है।

"चड्डी भी उतार देते हैं, तब चिपक लेना।"

"नहीं, कुछ देर रूको, आलोक मुझे चोदता है, मेरा दूध पीता है। सब कुछ करता है, मजा भी बहुत देता है, लेकिन आज पहली बार मुझे मर्द के सीने से इस तरह चिपकने का सुखद अहसास हो रहा है!"

कह कर उसने मुझे और कस कर जकड़ लिया। मेरे हाथ की चंचलता रूकी नहीं और वो अलका की गांड को सहलाते सहलाते उसकी चूत को टटोलने लगा। उसकी पैन्टी काफी गीली थी, ऐसा लग रहा था कि अभी अभी पानी छोड़ा हो। मैंने पूछ ही लिया- पानी छोड़ रही हो क्या?
"हूं..."

बस इतना सा ही बोली- बस मुझे थोड़ी देर और ऐसे ही चिपकाये रहो। तभी दोनों लड़कियां अलका के पीछे आयी और उसकी पैन्टी को उसके जिस्म से अलग कर दिया और पैन्टी को हाथ में लेकर बारी बारी देखने लगी।

"ओह अलका मैम, आपने तो बहुत पानी छोड़ दिया।"
उसके बाद मैंने अलका को अपने से अलग किया, उसकी आँखें लाल सुर्ख हो चुकी थी, चेहरे पर एक अजीब सी उदासी थी।

मैं उसके संगमरमर जैसे जिस्म को निहार रहा था, मेरी नजर उसकी चूत की तरफ गयी, साला झांट नहीं था, झांटों का जंगल था। मैंने कहा- अलका जी आपकी चूत में झांट नहीं, झांटों का जंगल है।

"हाँ, आलोक को बहुत पंसद है मेरी बड़ी-बड़ी झांटों को बनाना; जब मेरी झांटें काफी बड़ी हो जाती हैं तो वो उन्हें बनाता है, फिर चिकनी करके मेरी चूत के साथ खेलता है और जब तक खेलता रहता है, जब तक झांट बड़ी बड़ी न हो जायें।"

"मतलब 3-4 महीने तक नहीं बनाती हो?"

"हाँ... कभी कभी इससे ज्यादा का समय लग जाता है।"
"कैंची है?"
"हाँ, मैंने तुम्हें दी है, ध्यान से देखो।"

मैंने अलका का हाथ पकड़ा और जमीन पर लेटने को कहा। अलका जमीन पर लेट गयी और अपने अगल बगल दोनों लड़कियों को बैठा कर उनकी चूची को सहलाते हुए बोली- तुम्हारा ये यार चोदने में कैसा है?

"मैडम, आप चुदवा लो, आपको भी मजा आयेगा।"
"हम्म, देखते हैं?"
"देखना क्या मैडम जी, आपने हमारी चुदाई के बीच में आकर पूरा मजा खराब कर दिया, अगर थोड़ी और देर से आती तो मुझे तो पूरा मजा मिलता।"

रेशमा थोड़ा सा मुंह बनाते हुए बोली।

"अरे लाडो, चिन्ता मत कर, तेरे यार का हथियार पहले मैं चेक कर लूं, उसके बाद तुझे मैं चुदने का पूरा मौका दूंगी।"

इस बीच मैं अलका की झांटों को कैंची से कतरते हुए ट्रिम कर रहा था। जब बाल काफी छोटे छोटे हो गये तो अलका की पाव रोटी के माफिक फूली हुयी चूत मेरी नजरों के सामने आयी। मैं उसकी बची खुची झांटों के ऊपर हथेली फेरने लगा, मुझे लगा जैसे कि मैं मखमल के ऊपर अपने हाथ फेर रहा हूँ। उसकी मखमली चूत पर हाथ फेरने से वो भी पानी बिन मछली जैसे हो गयी हो, ऐसा लग रहा था कि वो छटपटा रही हो, अपनी दोनों जांघों को आपस में समेटने की कोशिश कर रही थी।

उसके बाद मैंने अपने पैरों को सीधा करके फैला दिया और अलका के कमर के हिस्से को अपने बीच में लेते हुए उसके पैरों को सिकोड़ दिया। उसके बाद कॉटन लेकर अलका की चूत का अग्र भाग में भर दिया और फिर रिमूवर को उसकी चूत में अच्छे से लगा कर उसकी टांगों के बीच बैठा जांघों को चूम रहा था।

तभी दोनों लड़कियाँ पास आयी और बोली- कुछ मजा हमें भी दीजिए, हमारी चूत को भी प्यार करिये। मैं बारी-बारी से दोनों लड़कियों की चूत में अपनी जीभ फिराने लगा. तभी अलका बोली- एक लड़की मेरे पास आओ! सोनी अलका के पास चली गयी. सोनी को देखकर अलका बोली- आओ मैं तुम्हारी इस छोटी मुनिया को प्यार करूँ! आओ मेरे मुंह में बैठो! सोनी अलका के मुंह में बैठ गयी, इधर मैं रेशमा की चूत चाटने के साथ-साथ अलका की जांघों को सहला रहा था, उसके पैर कांप रहे थे, रेशमा की चूत चाटने और अलका की जांघों को सहलाने से मेरे लंड में भी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी और लंड टाईट होकर सीधा मेरे दोस्त की बीवी की चूत से टच करने लगा।

इसी बीच मैंने उसके चूतड़ों को सहला दिया - Gand marne ke liye maine use manaa liya

इसी बीच मैंने उसके चूतड़ों को सहला दिया - Gand marne ke liye maine use manaa liya, मस्त और जबरदस्त चुदाई , चुद गई , चुदवा ली , चोद दी , चुदवाती हूँ , चोदा चादी और चुदास अन्तर्वासना कामवासना , चुदवाने और चुदने के खेल , चूत गांड बुर चुदवाने और लंड चुसवाने की हिंदी सेक्स पोर्न कहानी , Hindi Sex Story , Porn Stories , Chudai ki kahani.

मेरी सेक्स कहानी में अभी तक आपने पढ़ा कि कैसे वो लिफ्ट वाली लड़की की कामुकता भड़की पड़ी थी और वो अपनी चुत चुदाई का लंबा प्रोग्राम बना रही थी.

उसके बाद घर आते समय रास्ते में मैंने अपने दोस्त को फोन किया और उससे थोड़ा झूठ बोलते हुए कहा- मेरी दो भतीजियाँ मेरे साथ आ रही है, उन दोनों ने दो तीन कम्पनियों में अप्लाई किया हुआ है, इसलिये 3-4 दिन तक रहना होगा, इसलिये कोई कमरे का इंतजाम करवा दो, ताकि हम तीनों आराम से रह लें और उनको कोई प्रॉब्लम न हो।

दोस्त ने उसके घर में ही रूकने को कहा, बोला- यार, महीने भर के लिये मेरी बीवी मायके गयी हुयी है, मुझे भी ऑफिस के काम से बाहर ही रहना पड़ता है, तुम चाहो तो मेरे यहाँ रूक सकते हो।
यह रहने की समस्या भी हल हो चुकी थी। मुझे उम्मीद थी कि रेशमा भी आयेगी।

मैं घर पहुंचा, बीवी को देर से आने का कारण बताने के बाद 4 दिन के लिये ऑफिस के काम से लखनऊ जाना है, इसकी भी जानकारी दे दी।
थोड़ी बहुत आपसी बातचीत करने के बाद बीवी ने मेरे कपड़े पैक कर दिये।

दूसरे दिन मैंने अपनी कार निकाली और उस स्टॉपेज पर पहुंच गया जहां पर अक्सर सोनी मिलती थी। सोनी, रेशमा और उन दोनों के घर वाले खड़े थे। मैं उस समय सूट-बूट पहने हुए था ताकि मैं उन सबकी नजर में सभ्य लगूं।
सोनी और रेशमा दोनों ही उस समय शलवार सूट में थी। रेशमा ने मुझे नमस्ते करते हुए गाड़ी के पीछे का डोर खोला और पीछे वाली सीट पर बैठ गयी उसके पीछे पीछे सोनी भी मुझे नमस्ते करते हुए बैठ गयी.

फिर दोनों के घर वाले निर्देश देने लगे।
थोड़ी देर बाद उन सबसे विदा लेते हुए मैंने अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी। हाँ दोनों के घर वालों ने मेरे मोबाईल का नम्बर मुझसे मांग लिया, मैंने भी बिना कोई नखरा किये हुए अपना मोबाइल नम्बर दे दिया और अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी।

थोड़ी दूर चलने पर मैं एक शॉप पर रूक गया, उस शॉप से मैंने दो बोतल पेप्सी खरीदी और थोड़ा बहुत स्नेक्स ले लिया और उन दोनों को देकर मैंने अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी। थोड़ी देर तक हम तीनों ही चुप बैठे रहे, पर जैसे ही हमारी गाड़ी सिटी रोड से हट कर हाईवे में आयी तो मैं ही उन दोनों के छेड़ते हुए बोला- किसको चुन्ना ज्यादा काट रहा है?
दोनों चुप।
मैंने फिर पूछा, पर कोई जवाब नहीं।
कई बार पूछा, पर कोई जवाब नहीं आया।

उनकी चुप्पी पर मैं बोला- देखो, जिस काम के लिये आयी हो, उसमें फिर संकोच कैसा करना। तुम लोग अपनी चूत की खुजली मिटाना चाहती हो और लंड का मजा लेना चाहती हो तो फिर ओपन हो जाओ। और ये क्या, ठंडा खरीदा है क्या गर्म करने के लिये। चलो निकालो और पिओ और पिलाओ।

सोनी ने गिलास में पेप्सी निकाली और सर्व करने लगी। गिलास लेने के बाद मैं फिर बोला- तुम लोगों की चूत में खुजली हो रही है कि नहीं?
इस बार सोनी बोली- सर!
जैसे ही वो ‘सर’ बोली, वैसे ही मैंने टोका- कोई सर नहीं, सक्सेना या शरद बोलो, और चाहो तो गरिया सकती हो।
“ठीक है शरद… हो तो रही है खुजली, तभी तो तुम्हारे साथ हम दोनों घर में झूठ बोल कर आयी हैं।”

इसीलिये तो बोल रहा हूं कि जब इस सब के लिये घर में झूठ बोला है, तो फिर खुल कर मजा लेंगे।
दोनों एक साथ बोली- ठीक है।
मैंने कहा- ‘ठीक है’ से काम नहीं चलेगा, दोनों लोग वादा करो!
मैंने अपने हाथ की हथेली खोलकर पीछे करते हुए कहा।

दोनों बारी बारी मेरी हथेली में अपने हाथ की थपकी देते हुए बोली- हम वादा करती हैं।
जब दोनों ने वादा शब्द बोल लिया तो मैंने फिर एक वादा कराया, उनसे कहा- तुम दोनों इस खेल को नहीं जानती हो तो फिर मैं जैसा कहूंगा वैसा ही करना पड़ेगा, मैं यह नहीं करूंगी, वो नहीं करूंगी, यह सब नहीं बोलना है।
दोनों ने एक बार फिर से मुझसे वादा किया।

पेप्सी खत्म करते ही मैंने अपना गिलास सोनी को पकड़ाया और बोला- इस बोतल को अभी 10 मिनट में हम सभी को खाली करना है.
और साथ में मैंने अपनी पैंट और चड्डी को नीचे सरका दिया।
इतने में सोनी ने मुझे गिलास में पेप्सी भर कर फिर पकड़ा दिया और साथ में दोनों लोगो ने भी पेप्सी पी ली; इस तरह एक बोतल खाली हो गयी।

अब तक हम लोग 30-40 किमी दूर आ चुके थे।
पेप्सी खत्म होने के बाद मैंने उन दोनों में से किसी एक को आगे की सीट पर आने को कहा।
सोनी ने रेशमा को इशारा किया, रेशमा बिना कोई वक्त गंवाये आगे आ गयी.

जैसे ही वो आगे वाली सीट पर आकर बैठी और उसकी नजर मेरे लंड पर पड़ी- हाय माँ!
फिर बोली- कितना बड़ा है आपका लंड! जैसे कहानी में पढ़ती थी उतना ही बड़ा दिख रहा है।
मैंने चुटकी लेते हुए कहा- रेशमा, तुमने मेरा लंड देख लिया है अब मुझे तुम्हारी चूत देखनी है। अपनी सलवार और पैंटी उतारो।
“वो तो मैं आपको दिखा दूंगी, पर पहले गाड़ी को किनारे लगाइये।”
“क्यों?”
“पेशाब आयी है।”
“हाँ, मुझे भी आयी है!” सोनी बोली।

“अरे पेशाब करने के लिये भी तो सलवार और पैन्टी तो उतारोगी ना, यहीं पर उतार लो।”
“आप भी न शरद? पहली बात तो यह है कि आपकी बात मानने का यह मतलब थोड़े ही कि मैं नंगी होकर सड़क पर खड़ी होऊँ और दूसरी बात यह है कि मैंने आपका लंड देखा है तो अपनी चूत के दर्शन मैं आप को कराऊंगी… न कि सारी दुनिया को!”

“अरे, तो मैं कब कह रहा हूं कि तुम दुनिया को अपनी चूत के दर्शन कराओ? फिर क्यों आप मुझे उतारने के लिये कह रहे हैं।”
“अरे उतारो तो… फिर मैं बताता हूँ! और विश्वास रखो कि मैं तुम दोनों से कोई अनैतिक काम नहीं करवाऊँगा।”
“मैं भी आपको दिखाने के लिये मना नहीं कर रही हूं पर पहले गाड़ी साईड पर लगा दिजिए, मैं मूत लूं, फिर आप जितनी देर चाहना मेरी चूत देखना।”

“अगर तुम मेरी बात मानो तो तुम दोनों ही नहीं बल्कि मैं भी गाड़ी के अन्दर मूतूंगा।”
“मतलब गाड़ी को गन्दी करोगे?”
“अरे गाड़ी भी गन्दी नहीं होगी। बोलो क्या कहती हो?”

सोनी बोली- रेशमा, चल उतार ले अपनी सलवार और पैन्टी… मैं भी उतार लेती हूँ।
सोनी की बात खत्म होते ही रेशमा ने अपनी सलवार का नाड़ा खोला, थोड़ी उचकी और अपनी शलवार के साथ साथ पैन्टी भी उतार दी। इसी तरह से जब मैंने बैक शीशे में देखा तो सोनी भी अपनी सलवार और पन्टी उतार चुकी थी।

तभी रेशमा बोली- लीजिए शरद, अब आप मेरी चूत को जी भर कर देख लीजिए।
मेरी नजर उसकी चूत पर गयी, क्या मस्त थी उसकी चूत… बरबस मेरे हाथ उसकी चूत को सहलाने लगे। नये यौवन की नई चूत और उस पर उसकी छोटी-छोटी मुलायम झांटें…

मैं सहलाने लगा तो रेशमा बोली- अब जल्दी से बताईये कहां मूतना है, नहीं तो मेरी छूटने वाली है।
मैंने फिर मजा लेने के लिये कार को साईड में लगा दिया और बोला- अब जाकर मूत लो।
थोड़ा झल्लाते हुए और आँखे दिखाते हुए वो तेज आवाज में बोली- इसीलिये मैं आपकी बात नहीं मान रही थी। आपकी बात मानकर नंगी हो गयी और अब मैं नंगी ही बाहर जाकर मूतूँ?
“अर्रर्र रर्रर्र… नाराज क्यों होती हो मेरी जान? विश्वास रखो!” कह कर मैंने सोनी से पेप्सी की खाली बोतल रेशमा को देने को कहा.

सोनी ने खाली बोतल रेशमा को पकड़ा दी, फिर मैं गाड़ी बढ़ाते हुए रेशमा से बोला- लो इसी मैं मूत लो।
“इसमें?” रेशमा मुंह बनाते हुए बोली।
मैंने कहा- क्यों क्या हुआ? क्या तुमने कभी पेशाब की जांच नहीं करवाई है?

अब मेरी बात को रेशमा के साथ साथ सोनी भी समझ गयी थी। दोस्तो, सोनी और रेशमा लगभग एक जैसी हाईट की थी पर जहां सोनी का रंग थोड़ा डार्क था, वहीं रेशमा गोरी थी। रेशमा का नाक नक्श भी ठीक था।

रेशमा ने बोतल पकड़ी और सीट पर थोड़ा आगे की ओर उकड़ू हो गयी जिससे उसकी मुलायम, खूबसूरत चूत सामने की ओर आ गयी, उसकी पुतिया भी कमल के दो पंखुड़ी के समान लग रही थी। रेशमा ने बोतल को अपनी चूत के पास लगाया और मूतना शुरू कर दिया।
मूतने के बाद बोतल को मुझे दिखाती हुयी बोली- अब क्या करना है?
और साथ ही साथ अपनी कुर्ती से चूत को साफ करने जा ही रही थी तो मैंने उसे रोका और बोला- कुर्ती से नहीं, अपने हाथ से साफ करो और फिर मुझे अपनी हथेली से चटाओ।
“क्या शरद जी, आप तो बहुत गन्दे हो!”

मैंने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा- अरे करो तो… मुझे बड़ा मजा आता है, और तुम्हें भी मजा आयेगा।
मेरे कहने पर रेशमा ने अपने हाथ से अपनी चूत को साफ करने लगी और फिर अपनी हथेली को मेरी मुंह के पास लाकर सोनी को देखने लगी।

मैंने उसके हाथ को चाटा और चटखारे लेकर बोला- रेशमा वाकयी बड़ा साल्टी-साल्टी है तुम्हारा। अब तुम पीछे जाओ और सोनी अब तुम आगे आओ।
रेशमा ने मुझे बोतल पकड़ा दी और पीछे चली गयी और सोनी आगे आ गयी, सोनी भी थोड़ा आगे होकर उकड़ू हुयी और बोतल चूत के पास ले गयी और मूतने लगी।

फिर वो भी वही काम करने जा रही थी, मतलब अपने शर्ट से चूत पौंछ रही थी.
पर मैंने उसका हाथ पकड़ा, उसने मेरी तरफ देखा तो मैं मुस्कुराते हुए अपने हाथ से उसकी चूत को साफ करने के बाद अपनी हथेली को चाटने लगा और सोनी की तरफ देखते हुए बोला- सोनी, तुम्हारी तो उस दिन से भी ज्यादा मजेदार है।

अब उसी बोतल में मूतने की मेरी बारी थी, मैंने सोनी की तरफ देखते हुए कहा- तुम बोतल मेरे लंड के पास कर दो और मेरे लंड को पकड़ लो, मैं भी मूत लूं।
सोनी ने मेरे लंड को पकड़ा और बोतल का मुंह मेरे सुपाड़े से सटा दिया। हांलाँकि मेरे लंड में हल्का तनाव आ चुका था, पर मैंने अपने पर काबू किया ताकि मुझे मूतने में कोई दिक्कत न हो.
इधर रेशमा भी सीट के पास आ गयी और मुझे मूतते हुए देखने लगी।

मेरे मूत चुकने के बाद सोनी ने बोतल हटाई और अपने अंगूठे से मेरे सुपारे को पौंछा और फिर अंगूठे को फिर जीभ से टच किया- अरे वाह, आपका तो नमकीन है।
“हाँ… तो तुम्हारा कौन सा मीठा था? वो भी नमकीन था।”

ठीक इसी बीच रेशमा ने भी अपने उंगली को मेरे सुपारे में टच की और फिर अपनी उंगली चाटने लगी, उसके बाद मुंह बना कर पच-पच करने लगी।
“बड़ा अजीब सा लग रहा है।” वो बोली।
मैं उसकी बात सुन कर मुस्कुराते हुए उससे बोला- रेशमा, जब मेरे सुपारे को चाटोगी तो और मजा आयेगा।

तभी सोनी बोली- वो तो ठीक है, अब इस बोतल का क्या करूँ?
“करना क्या है, पेप्सी समझ कर इसको भी पी लो।”
“धत…”
“अरे यार, तुम न सही, कोई और पी लेगा!”
मैंने गाड़ी किनारे लगाते हुए कहा।
मेरी बात को समझते हुए सोनी ने गेट खोलकर बोतल को बाहर रख दिया।

मैंने गाड़ी आगे बढ़ाते हुए रेशमा को देखते हुए कहा- तुमने कभी लंड चुसाई की है?
“नहीं, बस अपनी चूत में उंगली तब तक करती रहती थी, जब तक मैं शांत न हो जाऊँ और जब पानी निकल जाता था तो मैं शांत हो जाती थी। बस इतना ही किया है, लंड तो हमारे लिये दूर की बात थी।”
“तो फिर आज तुम्हारे पास लंड चूसने का मौका भी है।”

सोनी भी मेरा साथ देते हुए बोली- हाँ रेशमा, शरद का लंड चूसो, बहुत मजा आयेगा!
इतना कहकर सोनी एक बार पीछे की सीट पर जाने लगी, इसी बीच मैंने उसके चूतड़ों को सहला दिया।

रेशमा अब आगे आ चुकी थी।

चूत की खुजली मिटा रही हूँ - Chut ki khujli mita rahi hun - गांड भी मरावाऊंगी

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अपनी उंगली उसको दिखाते हुए मैंने मुंह के अन्दर डाल ली और फिर उसके छोटे छोटे दोनों मम्मों को दबाते हुए उसके पेट को चूमते हुए धीरे धीरे मैं योनि प्रदेश में प्रवेश करने लगा।
जैसे ही मैंने उसकी चूत को चूमा, वो मेरे सिर को पकड़कर पीछे हटने लगी, बोली- सर, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।
जितना मैं उसकी चूत के पास अपना मुंह ले जाने की कोशिश करता, वो अपनी गांड टेड़ी करके पीछे हो जाती।

मैं खड़ा हुआ और उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में कस कर भींच दिया और बोला- मजा बहुत मिलेगा, लेकिन नखरा करोगी तो फिर मुझे गुस्सा भी बहुत आता है और तुझे भी तो मेरे लंड को चूसना है और उसका वीर्य चखना है।
इतना कह कर मैंने उसकी चूत को अपनी मुट्ठी से आजाद कर दिया और उसको कुर्सी पर बैठा कर हत्थे पर उसके दोनों पैरों को रख दिया। इस तरह करने से उसकी चूत खुलकर मेरे सामने आ गयी।

उसकी चूत को चूत क्या कहूं… मुनिया कहना ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि उसकी चूत बहुत ही छोटी सी थी, लेकिन उठान काफी था।

मैंने उसके हाथ और पैरों को अपने हाथों में जकड़ लिया और फिर खुली हुयी फांकों के बीच अपनी जीभ चलाने लगा, वो अपने जिस्म को काफी हिलाने डुलाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन नाकाम हो रही थी।
मैं अब अपनी जीभ को उसकी चूत के अन्दर डाल रहा था तो कभी उसकी फांकों को चाट रहा था और फिर उसकी छोटी सी पुतिया को अपने होंठों के बीच दबा रहा था।

अब सोनी ने सिसयाना शुरू कर दिया था। अब सोनी अपने जिस्म को आगे की तरफ कर रही थी, उसकी इस हरकत से मुझे समझ में आ गया कि उसमें मस्ती छा रही है। मैंने हौले से उसके हाथों और पैरों को आजाद किया।
जैसे ही उसके हाथ और पैर आजाद हुए, उसने तुरन्त ही अपने पैरों को हवा में उठाया और मेरे सर को पकड़ते हुए बोली- सर और चाटिये, मजा आ रहा है। मुझे मालूम नहीं था कि चूत चटवाने में इतना मजा मिलता है।

उसकी आवाज फंसी-फंसी सी आ रही थी क्योंकि वो अपनी सांसों को काबू में नहीं रख पा रही थी।

तभी उसका शरीर अकड़ने लगा और बोली- सररर रररर!
बस इतना कह पाई थी और वो ढीली पड़ गयी थी और उसकी चूत से निकलता हुआ रस इस समय मेरी जीभ में गर्म लावे के सामान लग रहा था. मैं बड़ी ही तन्यमयता से उसको अपने मुंह के अन्दर लेता रहा, मैं उसके रस की एक एक बूंद को चाटता रहा और वो मेरे बालों पर अपने हाथ को फेरती रही। जब उसके रस की एक एक बूंद को चूस कर मैं उससे अलग हुआ तो बोली- सर मुझे बहुत मजा आया. तीन चार कहानी पढ़ने पर मुझे ये बकवास और घृणित कार्य लगता था लेकिन अब मुझे अहसास हुआ कि चूत चुदाई के खेल से पहले चूत चुसाई का भी अपना आनन्द है।

“हाँ… और साथ में लंड चुसाई का भी अपना आनन्द है। तुम अब कुर्सी में देखो कि तुम्हारी चूत का रस कही वहां तो नहीं लगा है?”
सोनी अपने हाथ को थोड़ा झटकते हुये बोली- क्या सर आप भी?
“तो मेरा लंड चूसने के बारे में क्या ख्याल है?” अपने लंड को हिलाते हुए उसकी तरफ देख कर कहा।

जैसे ही उसने मेरे लंड को देखा तो बोली- सर ये आपका लंड तो बहुत बड़ा है। कभी कभी आते जाते लड़कों को मूतते हुए नजर पड़ जाती थी तो उनका लंड बहुत छोटा दिखता था।
“अरे… जब लंड टाईट नहीं रहता तो छोटा दिखता है और जैसे-जैसे टाईट होता है, फिर बड़ा हो जाता है।”

“अब बताओ आगे क्या करना चाहती हो? लंड चूसने का आनन्द लोगी या फिर अभी भी?” कह कर मैंने अपनी बात रोक दी।
“नही नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है, मैं भी आपके इस लंड को चूसने का आनन्द लूंगी।” उसने अपने हाथ में मेरे लंड को पकड़ा, खोल को पीछे करते हुए अपनी हथेली को मेरे सुपारे से रगड़ा और फिर खोल को सुपारे के ऊपर ढक कर लंड को मुंह में ले लिया।
वो कोशिश तो कर रही थी लेकिन अभी भी उसके दिमाग में कहीं न कहीं, यह बात थी कि वो कैसे लंड को चूसे क्योंकि यहाँ से पेशाब निकलती है।

मैंने कहा- अगर इस तरह करना हो तो रहने दो।
“नहीं नहीं, ऐसा नहीं है, मैं मजा लेना चाहती हूं लेकिन मुझे मालूम नहीं है कि कैसे चूसा जाता है।”

मुझे उसकी बात समझ में आयी, लेपटॉप खुला हुआ था, मैंने पोर्न वीडियो साईट खोली, जिसमें चूत चुसाई और लंड चुसाई वाली एक 10-15 मिनट की क्लिप चला दी और सोनी से बोला- जैसे जैसे इस क्लिप में जैसे लड़की लंड चूस रही है, तुम भी उसी तरह करो!
और मैंने अपनी पोजिशन ऐसी बना ली कि लैपटॉप पर चलती हुयी क्लिप सोनी को ठीक तरीके से दिखे।

सोनी अब लंड को क्लिप देखते हुए चूसने लगी, करीब 10-11 मिनट के बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरे माल निकलने वाला है, ठीक उसी समय क्लिप वाली लड़की ने अपने मुंह को खोल दिया, सोनी भी उसी पोजिशन में अपने मुंह को खोल कर लंड को छोड़ दिया।
मैंने सोनी के सर को पकड़ा और अपने लंड को हिलाने लगा, एक तेज धार मेरे रस की उसके मुंह में सीधा जाकर निकली; मेरे वीर्य से उसका मुंह भर गया।

क्लिप देखते हुए सोनी किसी तरह से मेरे वीर्य को पी गयी लेकिन उसका मुंह बुरा सा बन गया, बोली- मुझे उल्टी हो रही है।
मैंने उसको पानी का गिलास देते और उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा- पहली बार ऐसा ही होता है, अच्छा नहीं लगता, उल्टी होती है, स्वाद गन्दा सा लगता है, मुझे भी ऐसा ही लगा था लेकिन अब देखो तुम भी मेरे लिये नई लड़की थी और किस तरह से तुम्हारे रस को पी गया।

एक बार फिर मैं कुर्सी पर बैठ गया और उसको अपनी जांघ पर बिठा कर मैं उसकी पीठ को सहलाता रहा। थोड़ी देर तक ऐसे करते रहने के बात उससे बोला- अगर तुम्हें पेशाब आयी है तो जाकर कर लो।
वो उठी, मैंने उसे इशारे से बाथरूम का रास्ता बताया और वो बाथरूम की तरफ बढ़ने लगी।
उसके पीछे पीछे मैं भी बाथरूम की तरफ चल दिया।

वो बाथरूम के अन्दर घुसी और दरवाजा बन्द करने लगी, मैंने उसे रोकते हुए कहा- क्या यार तुम सोनी, मुझे भी पेशाब लगी है।
“तो ठीक है, पहले आप कर लो, फिर मैं कर लूंगी।” कह कर मुड़ते हुए बाहर आने लगी तो मैं उसे रोकते हुए बोला- अब जब तुम मेरे लंड को अपने मुंह में ले चुकी हो और मैं तुम्हारी चूत चाट चुका हूं तो अब क्या शर्माना? चलो दोनों साथ करते हैं। तुम इस नाली के पास कर लो, मैं पॉट पर कर लेता हूँ। मैं और तुम्हारी भाभी चुदाई करने के बाद जब कभी भी पेशाब लगती है तो दोनों साथ ही कर लेते हैं।

मेरी बात सुनने के बाद वो वहीं नाले के पास बैठ गयी और मैं पॉट पर खड़ा होकर मूतने लगा।
शर्र… शर्र… की आवाज आ रही थी। हम दोनों की पोजिशन ऐसी थी कि मैं उसे मूतता हुआ देख सकता था और वो मुझे मूतते हुए देख सकती थी और उसकी नजर मुझे पेशाब करते हुए देख ही रही थी और मैं उसे।
लेकिन मैं देख उसे कम रहा था, सोच ज्यादा रहा था।

वो मूतने के बाद उठी, उसके उठते ही मेरी तंद्रा भंग हुयी, तब तक मैं भी कर चुका था और आदत के अनुसार अपने लंड को हिला रहा था, ताकि बची-खुची बूंद भी निकल जाये।
वह मेरे पास आई और पूछने लगी- आप अपने लंड को क्यों हिला रहे थे?
मैंने कहा- बची-खुची बूंदों को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था। और तुम क्या करती हो?
“आप को तो पता होगा?”
“मुझे कैसे पता होगा कि तुम क्या करती हो?”
“अरे जो भाभी जी करती है, वही मैं करती हूं!”
“भाभी जी तो बहुत कुछ करती हैं, तुम अपनी कहो?”
“मैं पैन्टी पहनती हूँ और इस तरह रगड़ कर बची खुची बूंदों को साफ कर लेती हूं!” कहते हुए दरवाजे पर लटके हुए पर्दे से उसने अपनी चूत साफ कर ली।

मैंने बाथरूम से बाहर आकर सिगरेट जलाई और कश लेने लगा, फिर मैंने सोनी को भी कश लगाने के लिये बोला, पहले तो वो मना करने लगी लेकिन मेरे जिद करने के कारण उसने सिगरेट हाथ में ली और जैसे जैसे मैं बताता जा रहा था, उसने सिगरेट को अपने होंठों के बीच लेकर एक कश लिया.
लेकिन उसने तेजी के साथ अपनी सांसों को अन्दर लिया, बस फिर क्या था, वो जोर से खांसने लगी।

मैंने उसके हाथ से सिगरेट ली और एक बार फिर उसकी पीठ को थपथपाने लगा। किसी तरह उसकी खांसी रूकी लेकिन उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे।
मैंने सोनी को एक बार फिर अपनी एक जांघ पर बैठाया और उसके आँसू के एक बूंद को अपनी उंगली में लेकर उसके मुंह के अन्दर डाल दिया और बोला- इसका स्वाद कैसा था?
वो बोली- शायद आपके वीर्य के रस जैसा।
फिर मैंने कहा- देखो, पहली बार कुछ भी करोगी, अजीब सा कुछ अलग सा लगेगा, लेकिन एक दो बार के बाद वही मजा देने लगेगा।

मैं सोनी की पीठ सहला रहा था और यह सोच रहा था कि यह अभी अनछुई है और अगर यह चुदने को तैयार हो गयी तो इसकी चूत से खून निकलेगा इसलिये मैं चाहता था कि किसी पुराने कपड़े का इंतजाम कर लूं ताकि उसको बाद में फेंका जा सके!
इत्तेफाक से एक पुराना कपड़ा मिल भी गया, मैंने उसे पलंग पर बिछा दिया.

तभी वो बोली- इसको आप पलंग पर क्यों बिछा रहे हो?
मैंने थोड़ा झूठ बोलते हुए कहा- तुम्हें और मुझे एक बार और यह खेल खेलना है तो तुम्हारा और मेरा वीर्य निकलेगा और बिस्तर को गन्दा कर देगा।

इतना कह कर मैंने उसे सीधा लेटने को कहा, वो लेट गयी और मैं उसके बगल में लेट गया। मैंने उसके सर के नीचे अपने हाथ रख दिया और अपनी टांग को उसके पैरों के ऊपर इस तरह से रख दिया कि मेरे लंड की गर्मी उसकी चूत महसूस कर सके।
साथ ही बोरो-प्लस की ट्यूब रख ली, उसकी चूत इतनी मुलायम और कोमल थी कि मैं अपने लंड की जोर आजमाइश उस कोमल और मुलायम चूत के साथ नहीं करना चाहता था।

मैंने अपने दूसरे हाथ से उसके बालों को सहलाते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये और जैसे ही उसके होंठ को चूसना शुरू किया ही था कि उसका मोबाईल बजा.
मेरा मूड खराब हो गया… हांलाँकि सोनी ने भी मोबाईल नहीं उठाया.

और फिर हम दोनों एक दूसरे के होंठ चूसने में व्यस्त हो गये।

पर उसका मोबाईल बार-बार बज रहा था, हार कर मुझे कहना पड़ा- सोनी, फोन उठा लो!
कह कर मैं लेट गया.
सोनी ने हैलो बोला तो दूसरे तरफ से भी हैलो की आवाज आयी, चूंकि मैं सोनी से चिपका हुआ था तो उसके मोबाईल से आने वाली आवाज को मैं साफ साफ सुन सकता था।

दूसरी तरफ से भी एक लड़की की आवाज आई, बोल रही थी- सोनी, कहां पर हो तुम, इतनी देर हो गयी है और तुम अभी तक कॉलेज नहीं आयी।
“नहीं पूजा, आज मैं कॉलेज नहीं आ सकती!” सोनी ने अपनी आवाज को नार्मल करते हुए कहा.
“क्यों क्या हुआ?”
“कुछ खास नहीं, वो जो सर मुझे कॉलेज तक ड्रॉप करने आते थे, मैं उनके यहाँ आयी हूँ।”
“ओह… कुछ खास?” दूसरी तरफ से आवाज आयी.
“हाँ वो बीमार हैं तो उन्हें देखने आयी थी।”

“ठीक है, देख लिया हो तो अब आ जाओ!” पूजा बोली.
सोनी ने कहा- नहीं आ सकती।
“क्या कहा? तुम नहीं आ रही हो, क्या बात है, कुछ है क्या वहां? कही ऐसा तो नहीं कि सेक्सी कहानी पढ़ते पढ़ते तुम्हारी चूत में खुजली शुरू हो गयी हो?” एक सांस में उसने सब बोल दिया.
तभी सोनी बोली- क्या पूजा, कुछ भी बोलती है। घर पर सभी लोग हैं।
“सॉरी यार, मैं मजाक कर रही थी।”
“यार… एक अच्छी सेक्सी स्टोरी पढ़ रही थी अन्तर्वासना पर… तो सोचा कि तुम्हें बता दूं। ठीक है, कल मिलते हैं तब तुम्हें वो स्टोरी पढ़वा दूंगी।” कह कर उसने फोन काट दिया।

सोनी ने फोन एक किनारे रख दिया और मेरी तरफ देखने लगी।
मैंने भी छेड़ते हुए कहा- बता ही देती कि हाँ… चूत की खुजली मिटा रही हूँ।
“आप भी न…” कह कर मेरे सीने के बाल जोर से खींच दिए।

उसकी चूत का रस अपनी उंगली में लिया - Uski chut me ungli dalkar ras nikal liya

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बात इस जनवरी की है। हमारे शहर की सड़कों की हालत खस्ताहाल है, पूरा शहर खुदा पड़ हुआ है। जाम की हालत तो यह है कि अगर आप 12 बजे रात कहीं शादी की पार्टी में जाने चाह रहे हैं तो नहीं जा सकते; 2-3 घंटे मानकर चलिये कि बरबाद होना ही है. तो सोचिये कि दिन की हालत कैसी होगी।


अब मुझे मेरे ऑफिस जाने के लिये सुबह जल्दी निकलना पड़ता है।


ऐसे ही एक सुबह मैं अपने ऑफिस के लिए घर से निकला कि कुछ दूर जाने पर एक लड़की ने मुझे हाथ का इशारा देकर रूकने के लिये कहा। उस समय वो अपने मुंह को ढके हुयी थी।
मैं उसके पास जाकर रूक गया.


वो बोली- सर, मुझे मेरे कॉलेज जाना है और जाम की वजह से कोई टैक्सी नहीं मिल रही है, क्या मुझे कॉलेज तक छोड़ देंगे?
मैंने उससे उसका रूट पूछा तो उसने मेरे ऑफिस वाले रूट को बताया तो मुझे कोई आपत्ति नहीं हुयी, मैंने उसे बाईक पर बैठने का इशारा किया।
वो इशारा पाते ही बैठ गयी।
मैंने उसके कॉलेज के पास ले जाकर उसे ड्रॉप कर दिया।


दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ, उसने हाथ से मुझे रूकने का इशारा किया, मेरे रूकने पर वो मेरी बाईक पर बैठी, मैंने भी बिना कुछ बोले अपनी बाईक आगे बढ़ा दी और उसके कॉलेज के पास जाकर उसे छोड़ दिया।


तीसरे दिन भी ट्रकों की लाईन लगी हुयी थी जिसकी वजह से पूरी रोड जाम थी। मैं समझ गया था कि आज भी वो टकरायेगी, लेकिन स्टॉपेज पर नहीं दिखी, तो मैंने अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी, थोड़ी ही दूर गया था कि वो पैदल चली जा रही थी और साथ ही साथ पीछे घूम कर देखती भी जा रही थी।


जैसे ही उसे मेरी बाईक दिखी तो उसने एक बार फिर हाथ दिया, मैं रूका और उससे बोला- भाई अपने मुंह से यह पर्दा हटा लो तो मैं भी देखूँ कि मेरे साथ जाने वाली कैसी दिखती है।
मेरे कहने पर वो मेरे सामने आयी और अपने मुंह से ओढ़नी हटा ली।
नाक-नक्शा या चेहरे से देखने पर वो बहुत ज्यादा सेक्सी या खूबसूरत नहीं थी।


तभी उसने पूछा- क्या अब मैं आपके साथ चल सकती हूँ?
मेरे हाँ बोलते ही वो मेरी बाईक पर अपने पैरो को क्रॉस करके बैठ गयी।


रास्ते में वो बोली- क्या आप रोज इधर से जाते हैं?
जवाब में मैंने बोला- तीन दिन से तुम मेरे साथ अपने कॉलेज जा रही हो, तो इसका मतलब मैं रोज इधर से जाता हूँ।
फिर उसने कुछ नहीं पूछा।


मैंने ही बात आगे बढ़ाते हुए उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम सोनी बताया और बोली कि वो बी ए थर्ड ईयर में है।
फिर उसके पूछने पर मैंने भी उसे अपना नाम बताया।


फिर वो बोली कि क्या मैं उसे रोज लिफ्ट दे सकता हूँ।
मैं चुप था कि क्या जवाब दूं तभी फिर वो बोली- अगर नहीं हो सकता तो कोई बात नहीं।
मैंने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है, लेकिन तुम्हें लिफ्ट माँगने की क्या जरूरत है?
तो बोली- अगर आप रोज मुझे लिफ्ट देंगे तो मैं कॉलेज डेली आ-जा सकूंगी।


मुझे समझ में आया कि इसे थोड़ी बहुत फान्नेशियल प्रॉब्लम है, तो मैंने भी ओके कर दिया।


कॉलेज के पास उतरते ही उसने मेरा नम्बर मांगा, जिसे मैंने दे दिया और उसने अपने पुराने और टूटे हुए मोबाईल में सेव कर लिया।


अब वो प्रतिदिन मेरे साथ जाने लगी और अब वो मुझसे चिपक कर इस तरह से बैठती कि मुझे अहसास तो होता लेकिन उसने कभी मेरे शरीर से अपना हाथ को टच नहीं किया।
इसी तरह दिन बीतते गये। बीच बीच में मैं उसके घर भी चला जाता था। उसके घर जाने का कारण उसकी जिद थी, इस तरह से उसके घर वाले मुझे जानने लगे और मुझे मानने भी लगे थे। जिस दिन मुझे थोड़ी देर हो जाती तो वो मुझे मिस कॉल कर देती और मैं उसे कॉल बैक कर आने की सूचना दे देता।


लेकिन एक दिन ऐसा आया कि मैं बहुत बीमार हो गया और मैं जा नहीं पाया. जैसा कि अक्सर होता था उसका फोन आया, मैंने आने में अपनी असमर्थता बता दी और जल्दी ठीक होने पर मैं उसे फोन करूंगा, कह कर मैंने फोन काट दिया.


इस समय में घर में अकेला था, मेरी बीवी और बच्ची स्कूल निकल चुके थे, मैं घर में अकेला था और अगर मैं घर में अकेला रहता हूं तो लुंगी के अलावा कुछ नहीं पहनता हूँ। उस समय भी मैं केवल लुंगी में था और लैपटॉप पर अन्तर्वासना पर अपनी और दूसरे लेखकों की कहानी पढ़कर अपना टाईम पास कर रहा था.


कि तभी घर की घंटी बजी, चूंकि मैं लुंगी में ही था और कहानी पढ़ रहा था तो मेरा लंड तना हुअ था। घर की घंटी लगातार बज रही थी तो मैं झल्लाहट में यह भूल गया था कि मैं केवल लुंगी में ही हूं और कहानी पढ़ने के कारण लंड तना हुआ था, मैं गुस्से में उठा और कौन है कहकर मैंने दरवाजा खोल दिया.


सामने सोनी को देखकर मैं हतप्रभ रह गया; मैं जल्दी से अपनी लुंगी को सही करने लगा लेकिन इस चक्कर में लुंगी थोड़ी सी उठ गयी और तना हुआ लंड का बाहरी हिस्सा दिखने लगा। मेरे ख्याल से सोनी की नजर उस पर पड़ चुकी थी।
सोनी यह बोलती हुयी कि मेरी ‘तबियत कैसी है’ कहते हुए तब तक अन्दर आ चुकी थी।


मैं दरवाजे को बन्द करते हुए अन्दर आया, तब तक पलंग के पास पड़ी हुयी कुर्सी पर बैठ गयी और उसकी नजर मेरे लैपटॉप पर पड़ चुकी थी.
और जैसा कि आप सभी को पता है कि एडल्ट साईट पर तस्वीर कैसी आती है।


मैंने कहा- ठीक नहीं महसूस कर रहा हूं.
वो मेरी बात में मुस्कुराई और बोली- तभी अपनी तबियत को सही करने के लिये यह सब पढ़ रहे हैं।
मैंने बात काटते हुए कहा- तुम मेरे घर का रास्ता कैसे पा गई?
“बस पूछते पूछते हुये मैं आपके घर पहुंच गयी, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि मुझे यह सब देखने को मिलेगा।”


मैं जल्दी से लैपटॉप बन्द करने के लिये सोनी के ऊपर झुका, मैरे उसके ऊपर झुकते ही उसने खींचकर एक सांस ली।
मैंने उसके ऐसा करने का कारण पूछा तो बोली- आपके जिस्म से आती हुयी इसी खूशबू की मैं दीवानी हो चुकी हूं!
और मेरे हाथ को पकड़ कर बोली- आप भी सक्सेना की कहानी पढ़ते हैं?


मैं उसकी बात सुनकर हंसा।
वो कुछ समझी नहीं इसलिये वो चुप रही।


मैंने उससे पूछा- तुम भी सेक्सी कहानी पढ़ती हो?
“हाँ, मेरी एक सहेली है, वो ही अपने मोबाईल पर मुझे पढ़ा देती है।”


मैं एक और कुर्सी लेकर उसके बगल में बैठ गया, वो कहानी पढ़ने में व्यस्त हो गयी, मैं उसे टोकते हुए बोला- अगर कहानी पढ़ती हो तो मजा भी ले चुकी होगी?
“नहीं!” कह कर वो फिर कहानी पढ़ने लगी।


मैं उससे कुछ कहना चाहता था कि उसने मेरा हाथ पकड़ कर दबा दिया। मैं समझ चुका था कि उसे अभी कहानी पढ़नी है। मैं चुपचाप उसे पढ़ते हुए देखता रहा, वो कहानी पढ़ते हुए अपनी शलवार के ऊपर से ही अपनी चूत को अंगूठे और पहली उंगली से हल्के से मसल देती।
कहानी पढ़ते हुए कई बार उसने ऐसा किया और उसको देख कर मैं भी अपने लंड को मरोड़ दिया करता था।


जब वो कहानी पढ़ चुकी तो मेरी तरफ घूमी, उसकी आंखें काफी लाल हो चुकी थी, मुझे उसकी आंखों में एक नशा सा दिखने लगा।


कहानी पढ़ने के बाद वो बोली- जो कहानी में लिखा है वो सही में होता है?
मैंने कहा- हाँ चुदाई तो सही में होती है।
“मैं चुदाई की बात नहीं कर रही हूँ।”
“फिर?”
“यही बुर को चाटना, लंड को चूसना?”
“क्यों नहीं, बहुत मजा आता है यह सब करने में! तुमने कोई सेक्सी मूवी देखी हो तो उसमें भी ऐसा ही होता है।”

“मैं नहीं मानती, क्योंकि उसके बदले उन लोगों को पैसा मिलता है। हकीकत में ऐसा नहीं होता।”
“बिल्कुल होता है!” मैंने उसके कधे में हाथ रखते हुए कहा।

फिर भी वो मेरी बात से सन्तुष्ट न हुयी और बोली- मैं यह कैसे मान लूं कि कोई लड़का या लड़की आपस में पहली बार मिले हों और मिलते ही एक दूसरे की बुर और लंड को चाटना और चूसना शुरू कर देते हों?
“क्यों नहीं, चुदाई का मजा चुसाई और चटाई में ही तो होता है। नहीं तो चूत के अन्दर लंड का दो ही मिनट का तो काम होता है, लंड गया चोदा और बाहर। फिर तो पूरा मजा खत्म… जबकि इन सब क्रियायों को करने के कारण चुदाई के खेल का आनन्द दुगुना हो जाता है।”


“क्या आप भी यह सब करते हो?”
“क्यों नहीं, बहुत मजा आता है।”
“आप मुझे समझाने के लिये झूठ बोल रहे हैं।”


मैं समझ चुका था कि कहानी पढ़ने के बाद उसके ऊपर खुमारी बढ़ रही है और अगर मैं थोड़ा सा इस समय संयम रखा तो कुछ मिलने की सम्भवना हो सकती है, इसलिये उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- नहीं, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ।
“ठीक है!” वो बोली।


इतना उसके बोलने से मेरा हृदय बैठने लगा, मुझे लगा, संयम बरतना मंहगा पड़ गया।
तभी सोनी बोली- अगर आप सच कह रहे है तो मुझे वीर्य चाट कर दिखाइये?
“वीर्य तो मैं चाट लूंगा, अगर तुम साथ दो!”
इस जगह पर मैंने संयम को बॉय-बॉय कहा और सीधा उससे बोला।


वो बोली- कैसा साथ?
तो मैंने उसे बताया- देखो इस समय मेरे इस पूरे घर में मैं अकेला लंड वाला हूं और तुम चूत वाली, और अगर तुम मुझे चूत का रस चाटते हुए देखना चाहती हो तो अपनी चूत को मेरा साथ देने के लिये मनाना होगा।
मेरा इतना बोलना था कि वो शर्मा गयी और अपने सिर को झुका लिया।


मैं समझ चुका था कि वो चाहती है, मैंने तुरन्त ही उसको पकड़ा और अपने से चिपका लिया, उसने भी मुझे जकड़ लिया। मैं उसकी गांड को दोनों हाठों से भींचने लगा और उसकी शलवार के ऊपर से ही उसके छेद में उंगली करने लगा।

फिर मैं कुर्सी पर बैठ गया और उसको अपनी दोनों टांगों के बीच में लाते हुए बोला- सोनी, मजा लेना है, तो शर्माना मत।
उसने मुझे सहमति देने के लिये अपना सर हिलाया।

मैंने बिना वक्त गंवाये उसकी कुर्ती को उतार दिया। नीचे उसने जगह-जगह फटी हुयी ब्रा पहने हुए थी जो उसके मुसम्मबी जैसे मम्मों को छिपाने का भरकस प्रयास कर रही थी।
मैंने उसके पेट को सहलाया और उसकी ब्रा के ऊपर से ही उसके मम्मो को सहलाने लगा।

“सीईईई ईईई ईईइ…” करते हुए उसने अपने हाथ को मेरे हाथ के ऊपर रख दिया। मैंने उसके मम्में छोड़ कर उसे अपने से चिपकाया और उसके ब्रा की हुक खोल दिया।
अब मेरे सामने उसकी टाईट या कठोर चूची थी, जिसके निप्पल तने हुए थे जो इस बात का संकेत था कि उसके अन्दर भी ज्वार फूट रहा है।

मैं उसके मुसम्म्बी जैसे मम्मों को बारी बारी अपने मुंह को अन्दर लेने लगा और साथ में उसके चूतड़ को दबाता भी जा रहा था और बीच बीच में उसके छेद में शलवार के ऊपर से ही उंगली डालने की कोशिश कर रहा था, जबकि उसकी बाँहें मेरी गर्दन के ईर्द-गिर्द थी।

निप्पल पीते पीते मैंने उसकी शलवार का नाड़ा खोल दिया, शलवार सरसरा कर उससे अलग हो गयी और एक मटमैली सफेद पैन्टी, जिसका हाल भी उस ब्रा की तरह था, अब उसके जिस्म में रह गयी थी।
मैंने उसके जिस्म से उस पैन्टी को अलग किया और हाथ में लिया तो उस पैन्टी में उसका रस लगा हुआ था और शायद पहले का भी जब भी कभी वो कहानी पढ़ कर या सोचकर उत्तेजित होती रही होगी और उसका रस उसके अन्दर से छूटने के बाद पैन्टी में लगता रहा होगा, वही रस उसे परेशान करता रहा होगा जिसकी वजह से उसे अपनी बुर को खुजलाना पड़ता था और इसलिये उसकी पैन्टी में जगह-जगह छेद बन चुका था।

अब वही रस सूख चुका था और जिसकी वजह से पैन्टी की वो जगह काफी टाईट हो चुकी थी। और अब उसकी उसी पैन्टी में एक बार फिर वही रस लगा हुआ था जो यह बताने के लिये काफी था कि मेरे हाथों के स्पर्श ने उसके जिस्म का क्या हाल किया होगा और वो कितना ज्यादा उत्तेजित हुयी होगी कि एक बार फिर उसकी चूत ने रस छोड़ दिया।

मैंने उसकी पैन्टी से उस ताजे रस को अपनी उंगली पर लिया और उसको दिखाते हुए बोला- जब दो जिस्म का मिलन होता है तो यही वो रस है जो और उन्माद पैदा करता है। हालाँकि यह रस भी उसी पैन्टी से लिया हुआ था जहाँ पहले से ही अनगिनत रस सूख चुके थे और देखने में भी अच्छा नहीं लग रहा था, फिर मैंने बड़ी सफाई से उसकी पैन्टी से उंगली को पौंछा और उसकी चूत की फांकों को अंगूठे से सहलाते हुए और साथ ही उसकी चूत के अन्दर उंगली डालने की कोशिश कर रहा था।

उसकी चूत उसके रस से सराबोर थी फिर भी उसकी चूत के अन्दर काफी गर्मी थी। उंगली लगाने भर से ही वो चिहुंक उठी और मेरी उंगली गीली हो गयी।
मैंने एक बार फिर उसकी चूत का रस अपनी उंगली में लिया और उसको दिखाते हुए बोला- सोनी!
वो मेरी तरफ देखने लगी!
अपनी उंगली उसको दिखाते हुए मैंने मुंह के अन्दर डाल ली और फिर…

चुत एक झटका दे कर झड़ने लगी थी - Chut ek jhtke ke sath jhadne lagi thi

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मैं लंच के बाद से सोच रही थी कि अंकल ने मुझे रूम में क्यों बुलाया होगा, लंच करते वक्त ही अंकल बोले थे कि नीतू दोपहर को मेरे रूम में आना, थोड़ा काम है.


अभी अभी मेरी बारहवीं के एग्जाम खत्म हो गए थे, मम्मी और पापा दोनों जॉब करते थे, इसलिए मैं दोपहर को घर में अकेली ही रह जाती थी.


समीर अंकल, उनको मैं अंकल ही बुलाती थी. वो मेरे पापा के दोस्त के भाई हैं. उनका गांव यहां से बहुत दूर है, पर अभी हमारे ही शहर के एक कॉलेज में इंग्लिश के प्राध्यापक है.


हमारे बंगलो में एक गेस्ट क्वार्टर में उनके रहने की व्यवस्था की गई है. अब तो वे पापा के भी अच्छे दोस्त बन गए हैं. अंकल अकेले ही रहते थे, इसलिए उनके खाने की व्यवस्था भी हमारे ही यहां की थी.


उनके यहां पर रहने पर मम्मी को भी कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि उनका पढ़ाने का विषय इंग्लिश था. मैं इंग्लिश में थोड़ी कमजोर थी, तो मम्मी को लगा कि उनकी ट्यूशन का मुझे फायदा होगा. अंकल ने भी मुझे बहुत अच्छे से पढ़ाया, ट्यूशन में मेरे साथ मेरी दो सहेलियां सीमा और जया भी थीं और हम तीनों के पेपर्स अच्छे गए थे. मेरी तरह वो दोनों भी अंकल की पढ़ाई से बहुत खुश थीं.


मैंने दोपहर को सब काम खत्म करके थोड़ी देर आराम किया, फिर मैं दरवाजे को लॉक करके अंकल के क्वार्टर की तरफ गयी. दरवाजे पर खटखटाया, तो अंकल ने दरवाजा खोला.
अंकल- आओ नीतू बेटी, मैं तुम्हारी ही राह देख रहा था.


अंकल लगभग चालीस बयालीस की उम्र के होंगे, पर अभी तक उनकी शादी नहीं हुई थी. वे बैचलर थे, फिर भी उन्होंने अपना रूम बिल्कुल साफसुथरा रखा था. उनके रूम में ज्यादा सामान भी नहीं था. एक कोने में एक लकड़ी का बेड था, उसके पास उनका स्टडी टेबल, उसके पास एक फ्रिज. एक दीवार के पास सोफासैट और उसके सामने वाली दीवार पर टीवी.


अंकल बोले- ऐसे क्या देख रही हो, कहीं कुछ सामान तो नहीं बिखरा पड़ा?
मैंने कहा- कितनी साफ सुथरा है आपका रूम, मेरा रूम तो आपके रूम से गंदा होगा. अंकल क्या काम था?


अंकल ने मुझे बेड पर बिठाया और और स्टडी टेबल की कुर्सी खींच कर मेरे सामने बैठ गए और बोले- नीतू तुम्हें तो पता है कि मैं मैगज़ीन में और ब्लॉग पर आर्टिकल लिखता हूँ.


वैसे तो अंकल बहुत ही टैलेंटेड इंसान हैं, पढ़ाते भी अच्छा हैं, उतना अच्छा लिखते भी हैं. गाना भी अच्छा गाते हैं और स्पोर्ट्स में भी अच्छे हैं. हर रोज जिम जाकर उन्होंने अच्छी खासी बॉडी भी बना ली है.


मैं- हां पता है, कल ही पापा घर में आप के किसी आर्टिकल की तारीफ कर रहे थे.
वे बोले- उसी सिलसिले में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए थी.
अंकल जैसे टैलेंटेड इंसान को भला मैं किस तरह की मदद कर सकती थी?
वे बोले- मुझे मेरे ब्लॉग पर एक आर्टिकल लिखना है, उसके लिए ही मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.
मैं- अंकल, आप जैसे एक्सपर्ट को मैं क्या मदद कर सकती हूं? वैसे आर्टिकल का विषय क्या है?
अंकल बोले- अब तुम्हें कैसे बताऊं, तुम गुस्सा तो नहीं होगी ना?


अंकल खामखा सस्पेंस बढ़ा रहे थे. मैं बोली- मैं कभी आप पे गुस्सा हो सकती हूं क्या, आपने मेरी इतनी मदद की है. आप नहीं होते, तो मैं फेल ही हो जाती. आप बताओ न, क्या विषय है आर्टिकल का?


उनके चेहरे पर बोलूँ कि नहीं बोलूँ, कुछ ऐसे भाव थे. फिर हिम्मत करके वो बोले- तुम्हें अंग्रजी में ‘किस’ शब्द पता है?
मैं थोड़ा डर गई, क्या बोलूँ मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
“पता है तुम्हें?” अंकल ने दूसरी बार पूछा तो मैंने सिर्फ सिर हिलाकर हां बोला.
अंकल ने पूछा- फिर बताओ हिंदी में क्या कहते हैं?
मैं बोली- उसे ‘चुम्मी..’ बोलते हैं.


अंकल- बराबर … क्या तुमने देखा है किसी को किस करते हुए?
मैं थोड़ा शर्माते हुए बोली- अंकल फिल्मों में देखा है और एक दो बार गलती से मम्मी पापा को भी करते हुए देखा है.
अंकल- करेक्ट, मुझे किसी जवान लड़की को किस करने के बाद मन में उठते हुए फीलिंग्स के बारे में आर्टिकल लिखना है. क्या उसमें तुम मेरी मदद करोगी?
मैं- मुझसे क्या मदद चाहिए आपको?


मैं बहुत ही कंफ्यूज हो गयी थी.


अंकल थोड़ा डरते हुए बोले- मुझे तुमसे एक किस चाहिए.
“क्या?” मैं लगभग चिल्लाते हुए बोली, तो अंकल भी डर गए.


“अरे नीतू बेटा सुनो तो, मुझे एक रिसर्च करना है, इसके लिए मुझे तुमसे एक किस चाहिए.” वो मुझे समझाते हुए बोले.
थोड़ा रुक कर मुझे फिर से समझाने लगे- नीतू बेटा, तुम्हें तो पता है, मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ. तुम्हें तुम्हारे अंकल पर भरोसा नहीं है क्या?


मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया था, पल भर कुछ समझ नहीं आ रहा था. एक तरफ एग्जाम में की हुई उनकी मदद याद आती, तो दूसरी तरफ उनकी यह अटपटी मांग.


अंकल बोले- तुम सोच के देखो, नहीं तो मैं तुम्हारी सहेली जया या फिर सीमा को हेल्प करने के लिए बोलता हूँ.


मेरी ही तरह जया और सीमा भी अंकल पर फिदा हैं, अंकल की पर्सनालिटी ही ऐसी है. जब वो दोनों अंकल से बातें करती थीं, तब मुझे बहुत जलन होती थी. मैं सोचती थी कि अंकल पे सिर्फ मेरा हक होना चाहिए, ऐसा मुझे हमेशा लगता था. शायद इसी लिए अंकल ने उन दोनों का नाम लिया होगा.
“ठीक है अंकल, मैं तैयार हूं.”
मैं अंकल के जाल में फंसने जा रही थी.


वो मेरे पास आए और मेरे बाजुओं को पकड़ कर मुझे खड़ा किया. उनके स्पर्श से मैं पूरी रोमांचित हो गयी थी. अंकल ने अपना एक हाथ मेरे पीठ पर लेकर आ गए और दूसरा हाथ मेरे सिर के पीछे ले आए. मेरे सिर के पीछे से दबाव डालकर मेरे चेहरे को उनकी तरफ ले जाते हुए उन्होंने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.


मेरे पूरे शरीर में मानो बिजली दौड़ गई, मेरी जिंदगी का वह पहला कामुक किस था. मेरे पैरों ने जैसे जवाब ही दे दिया था, अंकल ने मुझे पकड़े रखा था, नहीं तो मैं गिर ही जाती.
“क्या हुआ नीतू?”
मैं उन्हें बोली- अंकल, मुझे ठीक से पकड़े रखो, नहीं तो मैं गिर जाऊंगी.


अंकल ने अपने दोनों हाथ मेरी गांड पर रख कर मुझे अपनी तरफ खींचा. अब मेरा पूरा बदन उनके शरीर से चिपका हुआ था. अंकल के होंठों ने फिर से मेरे होंठों को अपनी हिरासत में लिया. मेरा नीचे का होंठ अपने होंठों में पकड़ कर वह मजे से चूसने लगे. मेरे अन्दर अलग ही मीठी से संवेदना जागने लगी थी. अंकल अपनी जीभ से मेरे दांतों की पकड़ को खोलने की कोशिश कर रहे थे, मैंने भी उन्हें खोल कर उनकी जीभ को रास्ता दिया.


अंकल की जीभ मेरी जीभ से द्वन्द खेल रही थी. मेरा अब मुझपे कोई कंट्रोल नहीं था. अंकल मेरी जीभ को उनके होंठों में पकड़ कर चूसने लगे. मैंने अंकल को कस कर पकड़ लिया, मुझे मेरी टांगों के बीच गीलापन महसूस होने लगा था. मेरी सांस अब तेज होने लगीं, ऐसा लगने लगा था कि पूरी जिंदगी भर उनकी बांहों में पड़ी रहूँ. अंकल ने मुझे थोड़ी देर ऐसे ही दबोचे रखा और फिर मुझे अपने से दूर कर दिया.


“क्यों तुम्हें नीतू कैसा लगा?”


मेरी तो उनसे नजरें मिलाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी. अंकल ने मुझे पकड़ कर बेड पर बिठाया, मेरा तो गला सूखा पड़ गया था, मैंने अंकल को बताया तो वो फ्रिज के पास गए और फ्रिज से स्लाइस की बोतल निकालकर मुझे दी.


मैंने होंठों पर रखकर उसे पीने लगी, ठंडा मैंगो जूस मेरे सूखे गले को ठंडक दे रहा था. एक ही बार में आधे से ज्यादा गटक कर मैंने बोतल को अंकल के हाथ में दी.
अंकल बोले- अरे पूरी पियो ना.
मैं बोली- नहीं, मेरा पेट भर गया.


तभी अंकल ने उस बोतल को अपने होंठों पर रखा और उसे पीने लगे.
“ईशशय … अंकल क्या कर रहे हो, झूठा है वो मेरा..!”
“अभी तो मेरे होंठ अपने होंठों से जूठे किये ना तुमने, तो इस बोतल का क्या?”
उनकी बातों से मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी.

मैं बोली- अंकल, आप का काम हो गया हो तो मैं जाऊं?
अंकल मुझे रोकते हुए बोले- अरे नीतू रुको, तुम्हें यह सब अच्छा नहीं लग रहा क्या?


अब उनको कैसे बताती कि मेरे पूरे बदन की हर तार झनकार कर रही थी. मुझे तो यह सब चाहिए था, पर अपने मुँह से बताने में शर्मा रही थी.


“नीतू, किस के बहुत प्रकार है और मुझे सब ट्राय कर के देखने है, यह काम एक दिन में खत्म नहीं होने वाला. तुम मुझे मदद करोगी ना?”


अंकल के बोलते ही मैंने शर्माकर सिर्फ हां में सिर हिलाया.
“नीतू, जरा नीचे तो लेट जाओ.
मैं कुछ समझी नहीं, तो मैंने अंकल से पूछा- क्यों अंकल, क्या करना है?
“आज का भाग अभी तक पूरा नहीं हुआ, उसे तो पूरा करते हैं.”


मेरे सीना ज़ोरों से धड़क रहा था. पता नहीं अंकल क्या करने वाले थे. मैं उनके कहने के मुताबिक बेड पर जाकर लेट गयी. अब अंकल बेड पर मेरे बाजू में बैठ गए.
“कितनी सुंदर हो तुम नीतू, ऐसे लगता है कि तुम्हें देखता ही रहूँ. अंकल मेरी तारीफ कर रहे थे और मैं शर्म से लाल हो रही थी.
“अब तक हमने किस का सिर्फ एक ही पार्ट किया, अब दूसरा कर के देखते हैं.”


अंकल ने अपने होंठ मेरे माथे पर रखे. माथे पर किस करने के बाद धीरे धीरे नीचे आते हुए मेरे आंखों पर और नाक पर किस करने लगे. अंकल का हाथ मेरे कंधे पर इस तरह रखा था कि उनका अंगूठा मेरे स्तनों के ऊपरी हिस्से को स्पर्श कर रहा था. अंकल ने मेरे गोरे गोरे गालों पर किस करना शुरू किया, वह मेरे मुँह पर हर जगह पर किस कर रहे थे. उन्होंने मेरे कानों को भी नहीं छोड़ा, अंत में उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रखे और उन्हें चूसने लगे.


“नीतू, मैंगो का स्वाद बहुत अच्छा है.” वह मेरे होंठों पर अपनी जीभ फेरते हुए बोले.


उनके होंठों से भी मैंगो का स्वाद आ रहा था. अचानक अंकल का हाथ कंधे से सरककर मेरे स्तन पर आ गया. मेरे पूरे शरीर में बिजली दौड़ गई, मेरे स्तनों को हुआ पहला आदमी का स्पर्श. मुझे तो खुद को भी अपने स्तनों को हाथ लगाने में शर्म आती थी और इधर मेरा स्तन आराम से अंकल के हाथ में आ गया था.


“आहहहह … अंकल हाथ हटाओ ना, कहां पर रखा है आपने.”
“ओह. … सॉरी नीतू, गलती से वहां पर चला गया, तुम उठ जाओ अब, आज का कोर्स पूरा हो गया.”
मेरे मना करने से शायद वह डर गए थे.


वो डरते डरते हुए बोले- कल आओगी ना … तुम बाकी का कोर्स पूरा करने?
मैं- ओके अंकल.
मेरा जवाब सुनते ही अंकल की जान में जान आयी.


“पर अंकल एक बात बताओ, आज हमने जो कुछ भी किया, उससे आपको आर्टीकल लिखने में मदद तो होगी ना?”
“नीतू बेटा आज तुमने मेरी बहुत मदद की है, इसका मुझे बहुत फायदा होगा. कल हम चेहरे के नीचे के अंगों पर किस ट्राय करेंगे.”


उनकी बातें सुनकर मेरी मन में लड्डू फूट रहा था, चेहरे के नीचे मतलब क्या था अंकल का?


“तुम कल आ रही हो, सुनकर मेरा बहुत बड़ा टेंशन खत्म हो गया, मैंने जानबूझ कर वहां पर हाथ नहीं रखा, गलती से चला गया. तुम गुस्सा तो नहीं हो ना … खैर ये लो मुझे मदद करने के बदले तुम्हारा गिफ्ट.”


उन्होंने मेरे हाथ में एक बड़ी कैडबरी रखी, उसे देख कर मैं भी पिघल गयी. अंकल को पता था कि कैडबरी मेरा वीक पॉइंट है.
“थैंक्स अंकल, मैं चलती हूँ.” मैं दरवाजे के पास चली गई और न जाने मुझे क्या सूझा और मैं पलट कर उन्हें बोली- और अगर आप जानबूझ कर भी उधर हाथ रखते, तो भी मैं आपसे गुस्सा नहीं होती.
मैं अपने घर चली गई.


रात को सोते वक्त अंकल का ही ख्याल मन में आ रहा था, बार बार उनका मेरे स्तन पर हुआ स्पर्श याद आ रहा था. वैसे तो सेक्स के बारे में मुझे थोड़ा बहुत मालूम था, फ्रेंड्स से सेक्स के बारे में बहुत सुना था, पर कभी देखा नहीं था. सहेलियों के साथ रहकर चुत लंड जैसे शब्द भी मालूम हो गए थे. जब हम सहेलियां सेक्स के बारे में बात करतीं, तब मेरी भी चुत में गुदगुदी होती थी. अंकल की दोपहर की कामुक हरकतों से मेरे मन में भावनाओं का सुनामी पैदा हो गया था, अंकल अब कल क्या करेंगे, इसका मुझे बहुत कौतूहल पैदा होने लगा था. पर मुझे भी वह सब महसूस करना था.


पिछले कुछ दिनों से रात को सोते वक्त मेरा हाथ अपने आप शरीर के कुछ अंगों को सहलाने लगता था. मुझे अलग कमरा मिला था, यह बात अच्छी हुई थी. पर कभी कभी ज्यादातर एमसी होने के बाद सहलाने की बहुत इच्छा होती थी. चुत में अलग सी गुदगुदी होती थी. तब रूम बंद करके, लाइट बंद करके और अपने ऊपर ब्लैंकेट ले कर ही अपने अंगों को सहलाने लगती. वैसे तो मम्मी पापा मुझे डिस्टर्ब नहीं करते थे, शायद उनका भी यही कार्यक्रम चलता होगा, पर मैं भी बिना रिस्क लिए सब सोने के बाद ही मेरा कार्यक्रम शुरू करती.


बेड पर लेटने के बाद मैं अपने शरीर पर ब्लैंकेट ओढ़ लेती, फिर अपना स्कर्ट उतार देती. फिर शर्ट के एक एक बटन खोलना शुरू करती, बटन निकालते वक्त ही स्तनों को हो रहे स्पर्श से ही मेरे निप्पल्स कड़क हो जाते थे. फिर सब बटन खोल कर शर्ट को स्तनों पर से हटा देती थी.


दिन ब दिन मेरे स्तनों का साइज शायद बढ़ रहा था, तभी तो सभी मर्दों की नजर मेरी छाती पर ही होती. मैं थोड़ा उठकर अपना शर्ट हाथों से निकाल देती थी. फिर हाथ पीठ पर ले जाकर अपने ब्रा का हुक खोलती थी. ब्रा ढीली होने से स्तनों को बहुत आराम मिलता था. मैं ब्रा भी उतार कर शर्ट के पास बेड के कोने में रख देती थी. फिर धीरे से स्तनों पर से ब्लैंकेट भी हटा देती थी, सीलिंग फैन की ठंडी हवा लगने के बाद मेरे निप्पल्स और भी कड़क हो जाते थे और उन्हें मसलने को मचल उठते. मेरे मस्त गोल गोरे स्तन सहलाने की याचना करने लगते थे.


दिन भर ब्रा से घिरे मेरे पसीने से सने स्तन पर हो रही हाथ की मालिश, मेरी जांघों के बीच खलबली पैदा करती और अपने आप ही अपनी जांघें एक दूसरे पर घिसने लगतीं.


दोनों स्तनों को अच्छे से मसलने के बाद मैं अपने अंगूठे और उसके पास वाली उंगली को मुँह में डाल कर अच्छे से गीला करके अपने निप्पल्स पर रगड़ती. मैं दो तीन बार यही क्रिया दोहराती. अपनी लार और पसीने से सने निप्पलों की एक अलग ही गंध मेरे नथुनों में भर जाती. मुझे वो गंध बड़ी अच्छी लगती थी. वह गंध आते ही एक अलग ही संवेदना मेरे दिमाग से मेरी चुत में चली जाती. तब तक मेरा हाथ अपने आप ही मेरी चुत तक चला जाता और चुत को पैंटी के ऊपर से सहलाने लगता.


अब तो मुझे पैंटी निकालने की भी फुरसत नहीं मिलती, वैसे भी जांघें एक दूसरे पर रगड़ने से पैंटी नीचे सरकने लगती थी. मेरी उंगलियां मेरी वी शेप पैंटी के इलास्टिक के अन्दर चली जाकर चुत के अन्दर समा जातीं. थोड़ी देर उंगली अन्दर बाहर करने के बाद फिर चुत के दाने को छेड़ती रहती.


उस वक्त बायां हाथ अब भी मेरे स्तनों को और निप्पल्स को सहलाता मसलता रहता. खुद को इसी तरह शांत करने की क्रिया मैं अपने अनुभव से ही सीखी थी.


अब उत्तेजना से मेरी सांसें तेजी से चलने लगतीं. मेरी मुँह से भी दबी दबी मादक सिस्कारियां निकलने लगती थीं. बदन अकड़ने लगता, उंगलियों की स्पीड अपने आप बढ़ जाती. चुत से मीठी मीठी लहरे पूरे बदन में दौड़ने लगतीं.


अब तो अंकल की छवि मेरी आंखों के सामने आ गई थी और चुत एक झटका दे कर झड़ने लगी थी. धीरे धीरे पूरे बदन की ऊर्जा चुत से बहकर शरीर से बाहर चली जाने लगी.


कितने दिन से यही सिलसिला चलता आ रहा था, आज का दिन भी यही हुआ. अंकल का आगे का स्टेप कौन सा होगा, यही सोचते सोचते मेरी आंख लग गई. अंकल ने किस तरह से मेरी वासना को एक ऐसे स्थान पर पहुंचा दिया, जहां सिर्फ चुदाई से ही अंत हो सकता था.

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दूसरे दिन अंकल सुबह नौ बजे घर पर आए, उन्होंने बताया कि उनके कॉलेज में एक्स्ट्रा लेक्चर्स है, इसलिए वह लंच पर नहीं आएंगे. जाते वक्त वह मुझे दो बजे अपने रूम में आने को बोले.


दिन भर मेरा किसी काम में मन नहीं लगा. खुद पर कंट्रोल नहीं हो रहा था, तो मैं पंद्रह मिनट पहले ही उनके रूम के पास गई और दरवाजा खटखटाया.
अंकल ने दरवाजा खोला, उनके गाल पर शेविंग क्रीम का फोम लगा हुआ था- बैठो नीतू, तब तक मैं शेविंग कर लेता हूँ.
मैं अन्दर आ कर बेड पर बैठ गई, अंकल ने मुझे टेबल पर रखी दो चॉकलेट खाने को बोला.


मैं चॉकलेट का कवर खोलते हुए बोली- अंकल आप नहीं खाते चॉकलेट?
अंकल ने जवाब दिया- मैं शेविंग कर रहा हूँ ना, शेविंग के बाद खा लूंगा.


मैं टेबल पर पड़ी मैगज़ीन पढ़ने लगी, थोड़ी देर बाद अंकल मेरे पास आ गए, उनसे आफ्टर शेव लोशन की सुगंध आ रही थी.


अंकल थोड़ा टेंशन में आकर बोले- नीतू, कल जो कुछ हमने किया यह तुमने किसी को बताया तो नहीं ना?
मैं शर्माते हुए बोली- मैं कैसे बता सकती हूं? ये भी क्या बताने वाली बात है?
“आज का अभ्यास करने से पहले हम कल के अभ्यास का रिवीजन कर लेते हैं.”


उनके हमारे खेल को अभ्यास बोलना मुझे बड़ा मजाकिया लगा, आज अंकल कल की तरह डर नहीं रहे थे और बहुत ही कॉन्फिडेंस में बात कर रहे थे. मुझे बांहों में पकड़कर उन्होंने मेरे चेहरे पर किस की बारिश शुरू कर दी. पर मेरे नाजुक पिंक होंठों पर उनकी खास नजर थी. मेरे होंठ उनकी चुसाई से अब दुखने लगे थे.


“अंकल, बस अब … मेरे होंठ दुखने लगे है.” मैंने खुद ही उनको बताया, तो अंकल ने मुझे अपने से अलग कर दिया.
अंकल बोले- अरे हां, नहीं तो आज का पीरियड रिवीजन में ही खत्म हो जाएगा … नीतू तुम बेड पर लेट जाओ, हमें अब आगे बढ़ना होगा.


अब मेरे चेहरे पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया था.


“कल मैंने तुम्हारी गर्दन तक किस ली … आज गर्दन से पेट तक के हिस्से की किस लेनी है.”
“गर्दन से पेट तक?” मुझे अभी भी समझ में नहीं आ रहा था.
अंकल बोले- हां, गर्दन से लेकर पेट तक हर एक अंग पर किस लेना है.
उनके मुँह से ‘हर एक अंग..’ सुनकर मैं रोमांचित हो गयी.


अंकल ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे बेड पर लिटाया- नीतू … तुम्हारा बदन गर्म लग रहा है, तुम्हारी तबियत ठीक है ना?
अब अंकल को कैसे बताऊं कि मेरे बदन की गर्मी उन्हीं की वजह से बढ़ी है. मैं ठीक से लेट गयी और स्कर्ट को ठीक किया. मैंने अपनी जांघें एक दूसरे पर रख कर टाइट पकड़ी हुई थी. अंकल ने भी इस बात को नोटिस किया.


“नीतू … अपने शरीर को ढीला छोड़ दो, रिलैक्स करो और एन्जॉय भी करो. इधर तुम्हें खाने के लिए कोई शेर नहीं आने वाला है.”


उनके कहने पर मैंने अपने मसल्स और पैर ढीले छोड़ दिए. अब अंकल बेड पर चढ़कर मेरे नजदीक बैठ गये- नीतू … अब मुझे तुम्हारी शर्ट को खोलना पड़ेगा.
वो कुछ ऐसा बोलेंगे, इसी की मैं अपेक्षा कर रही थी.
“पर क्यों अंकल?” मैं नासमझ बन कर बोली.
“नहीं तो मैं किस कैसे लूंगा, तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है ना?”
मैंने ना में सिर हिलाया.


“गुड..” बोलते हुए अंकल मेरी शर्ट के बटन खोलने लगे. कल उन्होंने मेरे स्तन को छुआ था, तो अंकल बोले थे कि गलती से हुआ. पर आज शर्ट के बटन खोलते वक्त वह खुल कर मेरे उभारों को छू रहे थे.


अभी अभी किये हुए किस और अभी स्तनों को हो रहे अंकल के स्पर्श से मैं गर्म होने लगी थी. सब बटन खोलने के बाद उन्होंने शर्ट के आगे की साइड को मेरी छाती से अलग किया.
मेरे ब्रा में कैद स्तन, उनके बीच की घाटी, मेरा सपाट पेट और उसके बीच की नाजुक नाभि को देख अंकल पागल हो गए थे- ओहहह ब्यूटीफुल … नीतू क्या नजारा है … वाह!
मेरी कामुक तारीफ सुनकर मुझे बहुत शर्म महसूस हो रही थी, मेरी आंखें अपने आप बंद हो गई थीं.


“अंकल … मैं क्या इतनी सुंदर हूँ?” मैं आंखें आधी खोलते हुए बोली.
“तुम्हें क्या पता कि तुम कितनी सुंदर हो, कभी खुद को आईने में देखो, आईने को भी तुम्हें निहारने का सौभाग्य दो.”


अंकल की बातों से मैं पिघलने लगी थी.


“शर्ट निकाल रही हो ना?” उनके कहने पर मैं होश में आई.
“अंकल पूरा मत उतारो ना, मुझे शर्म आती है.”
“पूरा मतलब..?” अंकल को तो सब पता था, फिर भी अनजान बनने का नाटक कर रहे थे, शायद उनको मेरे ही मुँह से सब बुलवाने में मजा आ रहा था.
“ब्रा … मत निकालो न…” मैं शर्माते हुए बोली.
“ठीक है मैं ऊपर से ही मैनेज कर लूंगा. अब शर्ट तो उतारो.”


मैं लेटे लेटे ही शर्ट उतारने लगी, शर्ट उतारने के लिए हाथ ऊपर करते ही मेरे स्तन ऊपर तन गए, तब अंकल ने लपक कर उनको अपने हाथों में पकड़ लिया.


“आहहहह … अंकल, शर्ट तो उतारने दो ना, कुछ तो सब्र करो.”
“नीतू … तुम्हारे जैसी सुंदर लड़की इस अवस्था में हो, तो ऋषिमुनि भी सब्र खो दें.”
“अंकल … मत सताओ न … कुछ कुछ होता है.”
“नीतू शर्ट उतार दिया ना … अब अपने हाथ अपने सिर के नीचे रखो.”


अंकल बड़े ही बदमाश निकले, शायद उनको मेरे तने हुए स्तन बहुत अच्छे लग रहे थे.
“मुझे तुम्हारी कांख को किस करना है, कोई भी पार्ट छूटना नहीं चाहिए.”


अच्छा तो अंकल का ये प्लान था. मेरे कांख वाली त्वचा, एकदम कोमल है, वहां पर हाथ लगते ही मुझे गुदगुदी होने लगती थी. वहां पर अंकल किस करने वाले थे और मुझे कौन कौन से प्रकार से तंग करने वाले थे, क्या पता. वैसे मुझे भी यही सब चाहिए था, खाली अंकल को क्यों दोष देना.


अंकल के कहने पर मैंने अपने हाथ मेरे सिर के पीछे रखे, तो मेरी कांख उनके सामने आ गयी. अंकल ने मुँह से हल्की सी सीटी बजायी- नीतू … तुम्हारी कांख में हल्के हल्के बाल हैं … हाऊ स्वीट.
अंकल बड़े शैतान हैं, मेरी प्राइवेट बातें खुलकर मुझे ही बता रहे थे. उन्होंने अपना मुँह मेरी एक कांख पर रख दिया और दूसरी पर अपना हाथ घुमाने लगे. मैंने उत्तेजना में अपनी जांघों को भींच लिया.


“नीतू … आहहहह … क्या मस्त खुशबू आ रही है, कौन सा परफ्यूम लगाती हो?”
मैं बोली- कुछ खास नहीं, पर नहाने के बाद डीओ लगती हूँ.
मेरी आंखें अभी भी बंद थीं.
“अच्छा तो ये तुम्हारी और डीओ की मिली-जुली खुशबू है, बहुत ही मादक है ”


अंकल ने मेरी दोनों कांखों पर किस किया और दोनों जगह पर जीभ भी घुमाई. उनके जीभ के स्पर्श से अलग ही सरसराहट पैदा हुई, उन्होंने मेरी नाजुक त्वचा पर हल्के से काटना भी शुरू कर दिया. मेरा दिमाग उन्हें रोकने को कह रहा था, पर मेरा शरीर दिमाग की बात नहीं सुन रहा था. मैं बड़ी मुश्किल से अपनी उत्तेजना को काबू करने की कोशिश कर रही थी, पर मेरी चुत?? उसको तो आज बहुत ही जोश चढ़ा था, पूरी गीली होकर मुझे और उकसा रही थी.

“नीतू … तुम्हें कब से यहां पर बाल आने शुरू हुए?”
अंकल के इस सवाल पर मैं बहुत शर्मा गयी- मैं नहीं बताऊंगी, अंकल … तंग मत करो … आप अपनी रिसर्च छोड़ कर यह क्या सवाल पूछ रहे हो?
“ओह सॉरी, इतना सुंदर दृश्य देख कर खुद पर कंट्रोल नहीं रहा, अब नहीं पूछूँगा.”
अंकल थोड़ा शर्मिंदा हुए.


अंकल ने ब्रा के कप पर अपना मुँह रखा, मेरे स्तनों पर उनके मुँह का दबाव महसूस हुआ. अंकल अब क्या करेंगे उसकी मैं अधीरता से राह देख रही थी. अंकल ने अपने दोनों हाथ मेरे पीठ के पीछे ले गए और चतुराई से मेरी ब्रा का हुक को खोल दिया. मैंने अपने हाथ मेरे सिर के पीछे रखे थे, इसलिए मेरे स्तन तने हुए थे, उस पर कस कर बैठी मेरी ब्रा अब खुल गई थी.


“अंकल … बेईमानी नहीं, आप ने वादा किया था कि ब्रा नहीं निकालेंगे.”
“नीतू निकाल नहीं रहा हूँ. सिर्फ थोड़ी ऊपर सरकाऊँगा … नहीं तो तुम्हारे आमों की चुम्मी कैसे ले पाऊंगा?”


अंकल ने मुझे निरुत्तर कर दिया और ऊपर से उन्होंने मेरे स्तनों को आम कहा था. मेरे विरोध की परवाह न करते हुए उन्होंने ब्रा को मेरे स्तनों से हटाकर मेरे उभारों को नंगा कर दिया था, शर्माकर मैंने अपनी आंखें बंद कर दीं.


कुछ पल कमरे में पूरा सन्नाटा था, थोड़ी देर बाद मैंने अपनी आंखें थोड़ी खोलीं, तो अंकल मेरे उभारों को बिना पलक झपकाए लगातार देखे जा रहे थे- सुंदर, अति सुंदर … नीतू सच में मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, जो मुझे तुम्हारा यह हुस्न देखने को मिला है.
उन्होंने हल्के से मेरे वक्ष को छुआ, मेरे पूरे शरीर में सनसनी दौड़ गई. किसी बिजली की तार को गलती से छुआ हो, ऐसा आभास हुआ.


“अंकल … नहीं, मत करो..”
पर मुझे नहीं लगता कि अंकल के कानों में मेरी बातें गयी होंगी. अंकल ने मेरे दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों से सहलाना शुरू कर दिया था.


“नीतू तुमने पूछा था ना मैं चॉकलेट खाता हूं कि नहीं, अब देखो मैं ये दो चॉकलेट खाने वाला हूँ. अंकल ने मेरी दोनों चॉकलेटी रंग के निप्पल्स को अपने उंगलियों में पकड़ कर हल्के से दबाया. अंकल की कामुक बातों से मेरी चुत में खुजली होने लगी थी. चुत से पानी बहना शुरू हो गया. तो मैंने अपनी जांघें और कस कर भींच लीं.


अंकल का स्पर्श सह पाना मेरे लिए मुश्किल होने लगा था. मैंने अपने हाथों को अपने सिर के नीचे से हटाया और उनके हाथों को स्तनों से दूर धकेलने की कोशिश करने लगी. पर उनके अन्दर का जानवर जाग गया था, वो मेरे से हिल भी नहीं रहे थे. किसी भूखे शेर की तरह वो मुझ पर झपट पड़े, मेरी छाती पर किस करने लगे, मेरे निप्पल्स को चूसने लगे. मेरे एक स्तन को मुँह में लेकर चूसते, तो दूसरा स्तन हाथ में पकड़कर गेंद की तरह दबाते.


जैसा तय किया था, उस तरह से किस करने के बजाए अपने आप पर से आपा खोने लगे थे. वह सब भले ही मुझे अच्छा लग रहा था, पर उन्हें रोकना जरूरी था- अंकल … रुको, ऐसा मत करो.
मैं थोड़ा ऊंची आवाज में बोली.
अंकल अब होश में आ गए थे- ठीक है, रुक जाता हूं. तुम कहती हो तो नहीं खाता चॉकलेट … पर थोड़ा रिसर्च अब भी बचा है, उसको तो पूरा करने दो.
अंकल की मस्ती अभी भी कम नहीं हो रही थी.


“अब क्या बचा है?”
“तुम देखो तो सही..”
मेरे हां बोलने से पहले ही अंकल ने अपना मुँह मेरे पेट पर रखा, उनकी मूंछें मेरे पेट पर गुदगुदी करने लगी थी; तो मैं हिलने लगी.


“नीतू थोड़ी देर ठीक से लेटो, ज्यादा हिलो मत.”


उनका पूरा ध्यान अब मेरी नाभि पर था, नाभि पर एक किस करने के बाद उसके इर्द गिर्द हल्के से काटने लगे. अंकल मुझे सताने के लिए नई नई ट्रिक ढूंढ निकाल रहे थे. उन्होंने अपनी जीभ मेरी नाभि में घुसा दी.
मुझसे उनका टॉर्चर सहन नहीं हो रहा था, मैं उनसे कसमसाते हुए बोली- बस अंकल, रुको अब..मुझे घर जाना है.


“बस और दो मिनट … प्रॉमिस..” ये कहकर उन्होंने फिर से अपनी जीभ मेरी नाभि में घुसाई और अपना दायां हाथ मेरी त्रिकोणीय घाटी पर रख दिया. उनकी इस हरकत से मैं चकित हो गई, अब अंकल धीरे धीरे मेरी चुत सहलाने लगे.


मैं झटके से उठकर बैठ गई, अंकल के हाथ पर एक चपत लगाकर उनको बोली- अंकल बस हो गया … अब मैं जा रही हूँ.
“ओके नीतू बेटा, जैसी तुम्हारी मर्जी मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं. पर कल आ रही हो ना? कल आखिरी पार्ट बचा है.


मैं थोड़ी देर सोचने लगी, पल भर मुझे ऐसा लगा कि ना बोल दूँ, पर आखिरी पार्ट क्या होगा, मुझे इसी बात का कौतूहल था, मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अंकल से पूछ लिया- आखिरी पार्ट मतलब क्या?
“कल हम नाभि के नीचे किस कर कर देखेंगे, तुम तैयार हो ना?”
“ठीक है अंकल, कल आती हूँ.”


मेरा जवाब सुनकर वह बहुत खुश हुए, कल की तरह उन्होंने मुझे एक बड़ी सी कैडबरी दी- नीतू एक बात पूछूँ, तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?
अंकल की बातों से ही मुझे लगा कि कुछ नॉटी सवाल पूछेंगे. मैंने भी हां में सिर हिलाया.
“नीतू तुम्हारी जांघों के बीच में हाथ रखा था, तब मुझे महसूस हुआ था, इसलिए पूछ रहा हूँ, तुम्हारी पैंटी गीली हो गई है क्या?”


अंकल की बेशर्मी की हद हो गई थी. अब मैंने भी बेशर्म होने की सोची और खड़े खड़े ही स्कर्ट के अन्दर हाथ डालकर मेरी पैंटी उतारकर अंकल के हाथ में थमा दी.
“अंकल मैं चलती हूँ, अब आप ही चैक करते रहो कि मेरी पेंटी गीली है या नहीं.”


अंकल ने अगले ही पल मेरी पेंटी को अपनी नाक से लगा लिया. मुझे एकदम से शर्म आ गई और मैं दबी सी मुस्कराहट लिए वहां से चली आई.


रात को मुझे वही सब याद आ रहा था, किस तरह अंकल ने मेरे बदन को सहलाया था, छेड़ा था. आंखें बंद करते ही वही सब आंखों के सामने किसी फिल्म की तरह दिखने लगा था. रात को मुझे झड़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. बार बार मुझे उनके शब्द याद आ रहे थे कि नाभि के नीचे का बाकी रह गया है.


मैं सोच रही थी कि अंकल मेरी चुत की भी चुम्मी लेंगे क्या. इसी ख्याल से ही मैं रोमांचित हो गई, इसीलिए चुत पर सिर्फ हाथ रखने से ही चुत ने पानी छोड़ दिया.


दूसरे दिन सुबह चुत को अच्छे से साबुन लगाकर साफ किया और उस पर भी डीओ लगाया, अंकल को अच्छी खुशबू आए इसलिए.


अब अंकल के घर जाने का टाइम हो गया था, मैंने हल्का सा मेकअप किया, होंठों को मम्मी की लिपस्टिक लगाई और अंकल के रूम की तरफ जाने लगी. मेरे आने की खबर अंकल को पहले ही लग गयी, मेरा दरवाजा खटखटाने से पहले ही उन्होंने दरवाजा खोला. मेरी तरह वो भी आगे का पार्ट पूरा करने के लिए उत्सुक थे. आज उन्होंने सिर्फ टी-शर्ट और लुंगी पहनी हुई थी.


आज उनका ये रूप देख कर मेरी चूत में चींटियां रेंगने लगी थीं. अब आगे क्या होता है, उसको मैं अगले पार्ट में लिखूँगी.
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